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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy Inspirational

आखिर क्यों ?

आखिर क्यों ?

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 महिलाओं की, प्रत्येक माह के कठिन दिनों के समय में होने वाली दिक्कतों की ओर ध्यानाकृष्ट करती , तीन पीढ़ी के तर्क-वितर्क को  इंगित करती यह कहानी आखिर क्यों ? 

समाज में 2 विचारधारा के लोग हैं । एक आधुनिक कहे जाने वाले जो हर संस्कार, संस्कृति को अंधविश्वास कह नकारते हैं दूसरे लकीर के फकीर जो देशकाल के हिसाब से अपने को बदलना ही नहीं चाहते आज के बच्चों को गलत ठहराते हैं । 


इसी संदर्भ में ये कहानी देखते हैं आगे क्या होता है ?


यदि इन दोनों का सुमेल हो जाये तो नजारा कुछ और ही सोने में सुहागे की चमक जैसा होगा । केवल तर्क की कसौटी से कसने के बाद ।

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घर में शादी की गहमा-गहमी से सभी को फुर्सत मिली थी । सभी रिश्ते-नातेदार जा चुके थे । घर के ही लोग बचे थे अमित की नयी आई बहू सिया ,अमित की बहन शिंजो छोटा भाई सुमित पापाजी मम्मी जी व दादी जी थीं।


पापाजी कुछ शादी के बचे पेमेंट करने चले गये थे। अमित सुमित दोनों भाई सो रहे थे । मम्मी जी पूजा घर की साफ-सफाई में लगी थीं । नवागत वधू रसोई में चाय नाश्ता बना रही थी । 


तभी नहाने को जाती शिंजो दादी की अनुभवी आंखो से न बच सकी । 


दादी जी तेज आवाज में शिंजो को बोलीं ,शिंजो अपना लहंगा समेट कर चलो, इधर-उधर उड़ती मत निकलो और नहाकर बाल्टी ठीक से धुलकर रखना । तेरी मां को भी आधुनिक हवा लग गयी है जो उसने तुम्हें कुछ समझाकर भी नहीं रखा । दादी की चीख़-पुकार सुन घर के सभी लोग आंगन में आ गये । 


अमित ने पूंछा, "दादी जी बात क्या है "? "कुछ नहीं तेरे मतलब की नहीं ,जाओ तुम अपना काम देखो "।


"हां मधुरा बहू तुम यहीं रुको मुझे तुमसे कुछ बात करनी हैं । तुमने भी सब धर्म-कर्म उठाकर ताक पर रख दिये या जानबूझकर अनजान बन रही "। शिंजो को समझाकर रखो इन दिनों में कैसे रहना है, क्या छूना है क्या नहीं छूना है। नैकी (नयी) बहुरिया सिया को भी बैठा लेना । वह भी समझ लेगी । 


बुदबुदाते हुये सत्यानाश हो इन अंग्रेजों की पढ़ाई का,घर में किसी को अपने धर्म-कर्म का खयाल ही ना रह गया । सब अंग्रेजों की औलाद बन गए बाहर जाने को उद्यत हुयीं ।


शिंजो मम्मी जी से फूट-फूट कर रोने लगी । क्या मां दादी जी ने मेरा तमाशा बना कर रख दिया है , भैया और सुमित भी क्या सोचते होंगे ?


पता नहीं क्या दादी जी ? मम्मी जी अब आप ही समझाइये दादी जी को । मधुरा ने बाहर जाती हुई दादी जी को रोकते हुए कहा, "मां जी!! आज मैं आपको भी कुछ बताना चाहती हूं । अमित सुमित वैसे भी समझदार पढ़े-लिखे संवेदी बड़े बच्चे हैं कल को एकल परिवारमें इस समस्या से 2-4 होना ही पड़ेगा । मेरे समय में आपने जैसे कहा मैंने किया पर आज के समय में यह नियम ना तो तर्कसंगत हैं और न न्याय पूर्ण । शिंजो कोई अपराधिनी बीमार या अस्पृश्य तो है नहीं ।


आज सभी लड़कियां घर से ऑफिस बाहर जाती हैं , परिवार भी एकल हो गये हैं । उनके लिए सारे रीति रिवाज मानना नामुमकिन ही नहीं दुःसाध्य भी हैं।


"फिर मां जी पहले के जमाने में घर का बना भोजन करते थे चल जाता था पर बाजार होटल के खाने को बनाने वालियों का क्या कैसे आप कहेंगी, करेंगी" अब तो तीर्थ जाने पर बिना बाहर का खाये-पिये न चलता ? हमें , देशकाल की परिस्थितियों के अनुकूल नियम निर्धारित करने चाहिए 


"तुम बात तो मधुरा बहू सही कह रही हो "। पर घर में ध्यान रखना पड़ता है ।


"अरे शिंजो बेटा तुम कहां चल दी ? केवल दादी जी को ही नहीं शिंजो बेटा !!! तुमको भी कुछ बातें बतानी समझानी हैं ।तुमको भी कुछ बातें समझानी बतानी है । दादी जी की बेटा हर बात गलत नहीं है बस दादी जी के कहने का ढंग थोड़ा अलग है । पहले का समय भी अब के समय से भिन्न था इतनी जानकारियां नहीं थीं "।


शेष अगले भाग में देखते हैं मधुरा ,दादी जी व शिंजो की बातचीत के तर्क-वितर्क।



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