आज़ादी की अलख - एक अंधकार में जलती लौ
आज़ादी की अलख - एक अंधकार में जलती लौ
साल 1947 की एक अनोखी रात थी। चारों ओर का छात्र था, लेकिन इस सन्नाटे के बीच एक गांव के कोने में एक छोटे सी किले में एक युवा क्रांतिकारी पर हमला किया गया था, जो अपने देश की आजादी का सपना बुन रहा था। उनका नाम अर्जुन था. अर्जुन ने अपना जीवन हर पाल देश की आजादी के लिए समर्पित किया था। उसकी आंखों में आग लगी थी और दिल में जिसने देशप्रेम की एक अनोखी भावना, उसे परिवार, घर और यहां तक कि अपनी जिंदगी से भी दूर कर दिया था।
अर्जुन के पिता एक किसान थे, जिन्होंने अपने खून-पसीना से अर्जुन को बड़ा किया था। उन्होंने अर्जुन को सिखाया कि देश की मिट्टी से कुछ नहीं होता। अर्जुन जब भी अपने गांव के परामर्श में काम करता है, तो वह अपनी मिट्टी को छूकर महसूस करता है कि यही उसकी असली ताकत है। लेकिन अंग्रेज़ की गुलामी ने उसकी यह फैक्ट्री छीन ली थी।
एक दिन अर्जुन के गांव में एक बड़ी घटना घटी। अंग्रेजों के जवानों ने गांव में लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। उन्होंने गांव के लोगों से जबरदस्ती कर लेना शुरू कर दिया और किसानों से अपनी फसलें छीन लीं। अर्जुन ने यह अन्याय देखा और अपने अंदर आग जल प्रकट की। उसने निर्णय लिया कि वह अब और उपेक्षा नहीं करेगी।
उन्होंने गांव के अन्य युवाओं को इकट्ठा किया और उन्हें अपने साथ मिलकर अर्जुन बिश्नाई के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। वे सब मिलकर एक ग्रुप संगठन बनाने लगे, जिसका नाम उन्होंने "आजादी की अलख" रखा। इस संगठन का उद्देश्य अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करना और गांव के लोगों को अंग्रेजों के तानाशाहों से मुक्त कराना था।
अर्जुन और उनके साथियों ने दिन-रात मेहनत की, और धीरे-धीरे उनके संगठन की ताकत बढ़ती गई। वे अंग्रेजों के हमले में मारे गए, उनकी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा और उनकी सेनाओं को नुकसान पहुंचा। अर्जुन की बहादुरी के चर्च पूरे गांव में दलित लगे। लोग उसे एक मसीहा के रूप में देखने लगे, जो उन्हें बस्ती की गुलामी से मुक्ति दिला सकता था।
लेकिन अर्जुन की यह यात्रा आसान नहीं थी। एक दिन, ब्रिटिश ने अर्जुन के संगठन का पता लगाया और गांव में उसे फेंकने के लिए आया। अर्जुन ने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने साथियों को सुरक्षित निकालने का प्रयास किया, लेकिन दुर्भाग्य से वह खुद ही नर्सरी के हत्थे चढ़ गए। अंग्रेज़ों ने उसे बहुत बुरी तरह से पीटा, लेकिन अर्जुन ने अपने देश की रक्षा के लिए एक शब्द भी नहीं बोला।
कहानी का दर्द भरा अंत:
अर्जुन को गांव के बीचों-बीच एक पेड़ से बांध दिया गया। इंग्लैण्ड के गुटों ने गाँव वालों को इकट्ठा किया और कहा, "देखो, यह ग़रीब नायक है। जिसने हमारी हुकूमत का विद्रोह किया। आज इसे सजा दूँगा, ताकि बाकी लोग सबक लें और विद्रोह करने की हिम्मत ना करें।"
अर्जुन के शरीर पर घावों के निशान थे, लेकिन उनके चेहरे पर एक भी निशान नहीं था। उसकी आँखों में अभी भी वही आग थी, जो देश के लिए जल रही थी। उन्होंने गांव वालों की ओर देखा और आखिरी बार चिल्लाया, "हमारी आजादी की कीमत मेरे जैसे कई लोगों ने अपनी जान चुकाई है। लेकिन याद रखना, यह आजादी हम सभी की है। इसे कभी मत छोड़ना।"
अर्जुन को फाँसी दे दी गई, लेकिन उनकी मौत ने गाँववालों की शहादत में एक नई अलख जगा दी। उन्होंने निर्णय लिया कि वे अर्जुन के बलिदान को वैकल्पिक नहीं करेंगे। गाँव के सभी लोग एकजुट होकर गैंग के खिलाफ लड़ाई के लिए एकजुट हो गए और आख़िरकार उन्होंने अपने गाँव को बस्ती की गुलामी से मुक्त कर लिया।
