आज़ादी - कहानी भूतिया घर की
आज़ादी - कहानी भूतिया घर की
भाग - 3
अब आगे"
(शंकर पे जिस व्यक्ति का कॉल आया था अब हम यह पे उसका कुछ नाम रख देते है जैसे की"राजीव)
शंकर से कॉल पे बात करने के बाद राजीव अपने घर के हॉल में बैठा हुआ था और कुछ सोच रहा था तभी उसकी एक मंगेतर वहा पे आती है जो उससे कुछ सवाल जवाब करती है" (और उसकी मंगेतर का नाम हम सुचित्रा रख देते है)
(सुचित्रा किचन में कॉफी बना रही होती है वो कॉफी राजीव को देने उसके पास आती है.. वो देखती है राजीव कुछ परेशान सा है सोच में पड़ा हुए है.. वो उसको कॉफी देती है और उसके पास आकर बैठ जाती है)
सुचित्रा "(राजीव के कंधे पे हाथ रखते हुए) क्या हुआ राजीव क्या बात है?? कुछ परेशान से लग रहे हो तुम?? सब कुछ ठीक तो है ना?? जिससे तुम कॉल पे बात कर रहे थे.. क्या कहा उसने कॉल पे??
राजीव "कुछ नहीं सुचित्रा वो तो बस ऐसे ही.. जाओ तुम टेबल पे खाना लगा दो खाने का वक्त हो चुका है वैसे भी.. बाकी बाते बाद में कर लेंगे"
सुचित्रा "हा वो तो मै लगा दूंगी लेकिन अगर तुम ऐसे ही मुंह लटका कर बैठे रहोगे तो मुझे बिल्कुल अच्छा नी लगेगा.. बताओ ना क्या बात है.. क्यों गुमसुम बैठे हो??
राजीव "यार सुचित्रा में क्या बताऊं तुम्हे?? मुझे ना बिल्कुल भी कुछ भी समझ नी आ रहा है में उसकी मदद कैसे करू.. तुम तो जानती ही हो ना अरविंद (राजीव का दोस्त) के परिवार के साथ क्या हो चुका है.. में बस उसकी मदद करना चाहता हूं और कुछ नहीं" में चाहता हूं जो अरविंद के साथ हुआ वो उसके और उसके परिवार के साथ ना हो"
सुचित्रा "ऐसा कुछ नहीं होगा राजीव इधर देखो" अरे देखो मेरे सामने (सुचित्रा अपने हाथो से राजीव का चेहरा उसकी तरफ करती है) अरविंद को और उसके परिवार को कुछ भी हुआ हो उससे मुझे भी दुख है क्योंकि अरविंद हमारे परिवार के सदस्य जैसा है" अब वो व्यक्ति या उसके मालिक जो कोई भी हो अगर वो उस घर को खरीदना चाहते है तो इसमें हम क्या कर सकते है?? अब उनको रोक तो नहीं सकते ना?? समझा सकते थे तो वो काम तुमने कॉल पे कर दिया" अब जब वो मानने को तैयार ही नहीं है तो ज़बरदस्ती क्यों करे..
राजीव"(सुचित्रा का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर) हां में अच्छे से जानता हूं कि ऐसे किसीपे भी ज़बरदस्ती नहीं कि जा सकती लेकिन मेरी जान सब कुछ जानते हुए भी किसीको मौत के मुंह में जाने देना ये किस बात कि इंसानियत है" कुछ भी नहीं बस किसी की ज़िन्दगी का सवाल है इसलिए अब उनको मौत के मुंह में जाने नहीं दे सकते ना"
सुचित्रा"तो फिर अब आगे क्या सोचता तुमने?? कैसे मदद करोगे उसकी?? कैसे समझाओगे उसको?? आज कल के लोग सबूत के बिना किसी की भी बात पे भरोसा नहीं करते ये बात तो तुम अच्छे से जानते हो ना"
राजीव"हम्म.. जानता हूं में बात तो तुम्हारी सही है" में ना सोच रहा हूं अरविंद से इसी बारे में बात करू" वैसे भी मेरे ऑफिस की छुट्टियां चल रही है" कुछ ज़रूरी बाते और सबूत इकट्ठा कर लेता हूं" अरविंद से पूछताछ करता हूं उससे शुरू से शुरू की बाते पूछता हूं शायद कुछ पता चल जाए"
सुचित्रा"ठीक है जैसा तुमको ठीक लगे" फिलहाल कुछ खा लो भूख लगी होगी ना तुमको चलो"
राजीव"ठीक है चलो"
{ अगली सुबह }
( सुनंदा किचन में काम कर रही होती है तभी वहा शंकर आ जाता है )
सुनंदा"अरे शंकर.... तुम यहां?? चलो अच्छा है में वैसे ही सोच रही थी कि तुम्हे बुलवाऊ ये बताओ बगीचे का काम अच्छे से हुआ?? पोधों को पानी पिलाया अच्छे से??
शंकर"जी मालकिन..
सुनंदा"और घर की जितनी भी काम वाली बाई है सबको अच्छे से कह दिया है ना कि हमारी गैरहाजरी में उन्हें घर की देखभाल करनी है??
शंकर"जी मालकिन मैने सबको अच्छे से समझा दिया है सब अपना काम ठीक से करेंगे"
सुनंदा"बहुत बढ़िया.. और एक बात ध्यान रहे जब हम नए घर को देखने जाए यह कोई गड़बड़ ना हो.. कोई भी चीज़ इधर से उधर ना हो तुम्हे घर के सारे नौकरों का मुखिया बनाया है.. और एक मुखिया की तरह तुम्हे नए घर पे सबको अच्छे से समझना है कि साफ सफाई कैसे करनी है" याद रहे वो घर छोटे मालिक को जन्मदिन के उपहार में दिया जा रहा है कोई भी गड़बड़ न हो घर एक दम अच्छे से साफ दिखना चाहिए"
शंकर"मालकिन आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए में सब पहले से ही समझ गया मुझे क्या करना है आप बस सब मुझपे छोड़ दीजिए साफ सफाई अच्छे से होगी वहा पे.. वो ज़िम्मेदारी में लेता हूं"
सुनंदा"चलो ये तो अच्छी बात है हमेशा की तरह आज भी मेरे समझाने से पहले ही तुम अपना काम बखूबी समझ गए" काफी समझदार हो" ठीक है अब तुम जाओ घर के बाकी काम देखो"
(कुछ देर चुप रहने के बाद)
शंकर"वो मालकिन आपसे कुछ पूछना था..
सुनंदा"हा बोलो शंकर क्या बात है??
शंकर"मालकिन बुरा ना मानो तो मै ये पूछना चाहता हूं कि वो घर कोई गड़बड़ तो नहीं है??
सुनंदा"मतलब?? तुम कहना क्या चाहते हो?? अब घर में क्या गड़बड़ हो सकती है??
शंकर"वो मालकिन थोड़ा आश्चर्य सा हो रहा है मुझे.. हवेली जैसा इतना बड़ा घर और इतना सस्ता" मुझे लगता है वहां ना तो ठीक से कोई लोग देखने मिलेंगे ना कोई आवक-जावक का रास्ता होगा वहा पर.. कहीं वो घर शापित तो नहीं है?? कोई भूत - प्रेत, या कोई बला का साया ऐसा कुछ तो नहीं होगा ना मालकिन उस घर पे??? मुझे तो शक हो रहा है मालकिन कहीं छोटे मालिक कहीं किसी मुसीबत में ना पड़ जाए"
सुनंदा"( हस्ते हुए ) क्या शंकर तुम भी.. उल्टी सीधी बातों पे भरोसा कर रहे हो" तुम चिंता मत करो ऐसा कुछ नहीं होने वाला है वहा" और आजकल के ज़माने में तुम कहा भूत - प्रेत की अफवाहों में आ रहे हो" और मेरे खयाल से ऐसी कोई चीज नहीं होती" तुम चिंता मत करो ऐसे खयाल अपने दिमाग से निकाल तो भूत वूत कुछ नी होता है" हो ना हो वो घर किसी और को भी खरीदना होगा इसलिए कोई व्यक्ति ऐसी अफवाहों को बढ़ावा दे रहा है"
शंकर"हा ये बात भी है मालकिन चलो कोई नहीं " हमे तो वैसे भी कुछ दिन में वहा के लिए निकालना है तो अभी से इतनी बाते करने का कोई मतलब नहीं निकलता" अब तो को भी होगा वहा जा कर पता चलेगा"
सुनंदा"और नहीं तो क्या अगर वहा कुछ होगा तो हमे पता चल ही जाएगा ना.. फालतू मे हम क्यों चिंता करे"
शंकर"जी मालकिन..
( इतना कह कर शंकर वहा से बाहर कि और निकल जाता है लेकिन शंकर की बाते कही ना कही सुनंदा को सोच में डालती है या नहीं और अब आगे क्या होता है वो तो अगले भाग मे देखा जाएगा )
अगले भाग के लिए बने रहिए"