आज़ादी - कहानी भूतिया घर की- भाग-6
आज़ादी - कहानी भूतिया घर की- भाग-6
(शंकर बच्चे की बात सुनकर दंग रह जाता है)
शंकर ( अपने दिमाग में ) :- आख़िर ऐसा
कैसे हो सकता है ? वो गायब कहां हो सकते है ? अभी तो यही थे.. ऐसा कैसे हो सकता है ? हे भगवान ये सब क्या है ?
( संजय पीछे से आवाज़ देता है )
संजय ( आवाज़ देता है ज़ोर से चिल्लाते हुए क्युकी शंकर उससे थोड़ा दूर खड़ा था ) :- अरे
शंकर क्या कर रहे हो ? इतनी देर क्यों लगा रहे हो ? जल्दी चलो देरी हो रही है निकालने के लिए..
( शंकर हा पे सर हिलाता है.. लेकिन वापस एक बार झांक कर बाहर की तरफ देखता है कि शायद बाबा वहां दिख जाए लेकिन फिर भी वो नहीं दिखते )
( शंकर ये सब देखकर काफी गुमसुम हो चुका था.. उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था बिल्कुल ही.. उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर हुए क्या, कैसे हुआ, )
( ऐसे ही चलते चलते शंकर संजय और बाकी लोगो के पास पहुंच जाता है.. )
संजय :- क्या कर रहे थे तुम इतनी देर वहां
पर ? जानते नहीं हो मालिक को किसी भी काम में देरी बिल्कुल भी पसंद नहीं है.. अब चलो जल्दी गाड़ी में बैठो निकालना है..
( शंकर संजय की बात का जवाब नहीं दे रहा था.. यहां तक कि वो संजय के सामने तक नहीं देख रहा था.. उसका सर नीचे की तरफ झुका हुआ था )
संजय :- ओ महाशय.. तुमसे बात कर रहा
हूं मै। आखिर कर क्या रहे थे तुम वहां पर ? जाना है या नहीं इतना बता दो.. यार कमाल है भाई में यहां पूछ रहा हूं और तुम कुछ बोल ही नहीं रहे हो।
शंकर ( उस बात से बाहर निकलता है और जल्दी जल्दी में हकलाते हुए बोलता है) :- हां हां चलो चलना है
तुम अपना सामान गाड़ी में रखना शुरू करो। में बाकी भाइयों की मदद करता हूं सामान रखने में।
संजय :- कमाल आदमी हो यार तुम।
( उसके बाद सब लोग मिलकर सामान गड़ी में रखना शुरू करते है )
- { दूसरी जगह } -
( राजीव नाश्ता करके अरविंद के घर से निकलता है )
राजीव ( अरविंद से ) :- अच्छा भाई अब मै चलता हूं.. हम
फिर कभी बात करेंगे । फिलाहल जाना होगा कोई इंतज़ार कर रहा है घर पे मेरा।
अरविंद :- मुझे भी इंतज़ार रहेगा भाई.. जल्दी मिलने
की कोशिश में रहना.. क्युकी मुझसे ज्यादा काम तो आजकल तुम्हे रहता है ।
राजीव :- हा हा भाई ज़रूर ज़रूर। चलो अब मै यहां
से निकलता हूं घर के लिए वरना देरी हो जाएगी। ज्यादा देर रुक नहीं सकता में।
( उसके बाद राजीव जल्दी से घर से बाहर निकालता है अपनी गाड़ी में बैठता है और वहां से निकल जाता है )
( सुचित्रा का कॉल वापस आता है राजीव पे )
सुचित्रा :-क्या कर रहे हो तुम यार.. वहां से निकले या
नहीं ? मुझे डर लग रहा है यहां एक तो में इन्हे जानती नहीं ऊपर से घर पर कोई रहता भी नहीं हम दोनों के अलावा। और तुम भी ना जाने कहां गायब हो।
राजीव :- अरे आ रहा हूं शांति रखो। बस निकाल
गया हूं गाड़ी में हूं। तुम ध्यान रखो अपना बस थोड़ी देर में आया वहां पर।
( कुछ देर बाद राजीव के घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आती है। सुचित्रा बालकनी में जा कर देखती है तो राजीव आ चुका होता है )
( सुचित्रा राजीव को देखकर थोड़ी राहत की सांस लेती है.. वो अंदर जाने के लिए मुड़ती है तभी कुछ देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है.. दिल की धड़कने तेज़ होने लगती है.. सांस फूलने लगती है.. वो तुरंत पलट कर राजीव की कार के पास वापस देखती है.. और वो जो कुछ भी देखती है उससे देखकर उसका दिल बैठ जाता है वो कुछ बोल नहीं पाती)