Soldier Aakash

Drama Horror Thriller

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आज़ादी - कहानी भूतिया घर की

आज़ादी - कहानी भूतिया घर की

6 mins
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भाग - 5


( अब आगे )

( राजीव अरविंद के घर से नाश्ता करके निकाल जाता है )

( दृश्य बदलाव )

( राकेश जी के घर )

( राकेश जी के घर सब कुछ तैयार हो चुका था.. निकालने के लिए गाड़ी भी आ चुकी थी.. सुनंदा की बहन एवम् उसके पति भी आ चुके थे )

( दूसरी तरफ शंकर और उसके साथी काफी परेशान थे कि आख़िर क्या होने वाला है हमारे साथ )

( शंकर अपने सभी पुरुषों की टोली के साथ तैयार था और बाकी महिला मंडल यहां के घर की देखभाल करने के लिए तैयार थी )

सुनंदा :-     सुनते हो जी में क्या कहती हूं..

                       बच्चे को उसके गिफ्ट के बारे में बता दे क्या मुझसे तो रहा नहीं जा रहा है बिल्कुल भी। एकदम शरीर में अलग ही उत्सुकता आयी हुई है ।

राकेश जी :-  अरे ऐसा मत करो। अगर तुम ऐसा

                       करोगी तो हमारा गुप्त उपहार देने का वो मज़ा सारा किरकिरा हो जाएगा ना। फिर क्या मतलब तेज़ जाएगा भला।

( दूसरी तरफ शंकर )

शंकर :-   छोटा मुंह बड़ी बात.. लेकिन मालकिन

                       मालिक बिल्कुल सही कहते है। मज़ा तो तभी आएगा ना जब छोटे मालिक अपना इतना बड़ा उपहार देख कर दंग रह जाएगा। वो खुशी से फूले नहीं समायेंगे।

संजय ( शंकर के कान में )       :- उपहार भी ऐसा है की

                       सबकी जान ले जाए। क्या पता मालिक ने ठीक से जानकारी निकली है भी या नहीं वहां की।

शंकर :-     ज़ाहिर सी बात है बिल्कुल भी नहीं।

                       अगर मालिक और मालकिन इतना सोचते तो शायद आज हम वहां नहीं जा रहे होते। खैर छोड़ो भगवान भरोसे रहो अब तो।

( इतने में गाड़ी के हॉर्न कि आवाज़ आती है.. तभी सब समझ जाते है को जाने का वक्त को चुका है )

( लेकिन जैसे ही सबके दिमाग में जाने का खयाल आता है तभी गाड़ी के पहियों के नीचे एक बिल्ली कुचल दी जाती है वो भी बिल्कुल घर के मुख्य दरवाजे के कोने के सामने )

( ये दृश्य देखकर सब लोग भागते हुए गाड़ी के पास जाते है.. और बिल्ली को हालत देखकर काफी घबरा जाते है )

सुनंदा :-     निकलते समय ही ऐसा अपशगुन.. बेचारी

                             बिल्ली..

( राकेश जी कुछ बोलते इतने में एक बाबा वहा पे आ जाते है.. )

बाबा :-      हे ऊपर वाले। बेचारी बेजुबान की आत्मा को

                          शांति प्रदान करना।

( फिर वो बाबा सारे लोगों को देखते है.. और राकेश जी को देखते ही उनके पास जाते है )

बाबा :-      क्या बात है राकेश कहां जा रहे हो इन सबको

                           लेकर।

राकेश जी :-     प्रणाम बाबा। वो आज हम सब लोग नया

                            घर देखने जा रहें है।

बाबा :-         माफ़ करना बेटा में तुम्हारी यात्रा में विघ्न

                           उत्पन्न नहीं करना चाहता। परन्तु अपशगुन हो चुका है मत जाओ।

राकेश जी :-       माफ़ करना बाबाजी लेकिन में इन सब

                          चीजों में नहीं मानता। ये होनी अनहोनी, शुभ - अशुभ, शगुन - अपशगुन । आखिर ये कभी हुआ भी है या सिर्फ डरने की बातें है। और काफी अजीब लगा मुझे सबसे पहले आप ये बताइए आपको मेरा नाम कैसे पता?? आज से पहले तो मैंने आपको यहां देखा नहीं। आप है कौन ??

बाबा :-         ऊपर वाले की साधना करने वाला एक

                           मामूली साधक हूं बेटा। मेरा कोई ठिकाना नहीं है। कभी यहां तो कभी वहां। बस भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करता हूं। पहली बार यहां आया हूं ।

राकेश जी :-     ठीक है। ये तो बहुत अच्छी बात है कि

                          आप एक साधक है।

बाबा :-          वैसे तो तुम्हारी ज़िन्दगी और मर्ज़ी तुम्हारे

                           हाथों में है बेटा लेकिन बस एक बात कहूंगा मत जाओ वहां पर। अपने बच्चे को कुछ और उपहार दे दो। हर सुंदर चीज अच्छी हो ये ज़रूरी नहीं है। अपने परिवार के साथ साथ तुम इन सब मासूमों की ज़िंदगियों को भी खतरे में डाल रहे हो। सोच लो बेटा मत जाओ वहां पर। ज़रा इन सब के बारे में भी तो सोचो।

( राकेश जी बाबा की बातें सुनकर हँसने लग जाते है.. इसके विपरीत शंकर बाबा की बातें सुनकर चौंक जाता है कि इन्हें इतना सब कुछ कैसे पता )

राकेश जी :-      लगता है बाबा जी ने मदिरा थोड़ी ज़्यादा

                            पी ली है। अरे बाबा कौन से ज़माने में हो आजकल ऐसा कुछ नहीं होता। भ्रम है आपका। खैर छोड़िए आपको समझाना मुश्किल है।

( राकेश जी शंकर को बुलाते है और कहते है कि बाबाजी को दक्षिणा और कुछ खाने पीने की चीजें देकर यहां से जाने को कह दो। ध्यान रहे वो वापस मेरे सामने ना आए )

( बाबाजी को फिर भी राकेश जी की कहीं हुई बातें सुनाई दे रही थी )

बाबा :-        मैं झूठ नहीं बोल रहा बेटा। लेकिन कोई नहीं

                        मैंने पहले ही कहा है तुम्हारी ज़िन्दगी तुम्हारे हाथों में है। आगे अब तुम जानो। की खुद के परिवार की और इन सब मासूमों की ज़िन्दगी कैसे बचाओगे ।

राकेश जी ( मुस्कुराते हुए ) :-       शंकर बाबा को बाहर        

                       का रास्ता दिखा दो । और इज्जत के साथ इन्हें कुछ खाने पीने को चीजें मेरी तरफ से दे दो। ये यहां से खाली हाथ नहीं जाने चाहिए।

बाबा :-       भगवान तुम्हारी रक्षा करे बेटा।

( इतना सुन कर राकेश जी गाड़ी में जा कर बैठ जाते है और शंकर अंदर से कुछ अतिरिक्त समान में से थोड़ा बाबा के लिए लाता है और फिर बाबा को दे देता है उसके बाद फिर शंकर बाबा को बाहर तक छोड़ने जाता है )

( सामान थोड़ा भारी था.. एक छोटी थैली जिसमें कुछ रोटियां थी वो शंकर पकड़ लेता है.. एक बड़ा थैला बाबा के हाथ में दे दिया। और दूसरा थैला बाबा के पास पहले से था जिसमें वह भिक्षा लेते थे )

( बाहर जाते हुए बाबा शंकर से कहते है )

बाबा :-       बेटा तुम्हारे मालिक थोड़े घमंडी प्रतीत होते है

                        बेशक उनमें तो अकाल नहीं है परन्तु तुम अपना एवम् सबका खयाल ज़रूर रखना। अगर कुछ मुसीबत हो एक बार दिल से भोले बाबा को ज़रूर याद करना वो जरूरतमंदों की मदद ज़रूर करते है । चलो में चलता हूं इन सबके लिए तुम्हें और तुम्हारे मालिक को धन्यवाद। भोले बाबा तुम्हारी रक्षा करे। हर हर महादेव ।

शंकर :-     मालिक की तरफ से में माफी मांगता हूं बाबा

                       उनकी बातों को दिल पे ना लगाइए ।

बाबा :-      कोई बात नहीं। जाओ वहाँ जाने का वक्त हो गया है।

( शंकर बाबा की बातों में इतना खो जाता है कि वह रोटियों को थैली ज़मीन पर रखता है और बाबा से हाथ जोड़ कर माफी मांगता है )

शंकर ( हाथ जोड़ते हुए ) :- हर हर महादेव बाबा। एक बार फिर से दिल से माफ़ी चाहता हूं।

( बाबा मुस्कुराते है और वहां से अपने दोनों झोले उठा के चले जाते है। शंकर को काफी बुरा लगता है। वो मालिक के पास वापस जाने के लिए पीछे मुड़ता है तभी उसकी नज़र नीचे पड़ी रोटियों को थैली पर पड़ती है। वो भागते हुए वापस बाबा के पास जाने को कोशिश करता है लेकिन वो जब जाता है तो देखता है वहाँ कोई नहीं था। शंकर गहरी सोच मे पड़ जाता है कि अभी तो बाहर गए थे इतने में बाबा कहां गायब हो गए। शंकर थोड़ी दूर जाकर देखने की कोशिश करता है सोचता है कहीं पास वाले घर में भिक्षा मांगने तो नहीं रुक गए होंगे लेकिन ऐसा नहीं था आस पास दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था )

( बाबा जिस तरफ मूड थे वहाँ से एक बच्चा खेल रहा होता है शंकर उसको अपने पास बुलाता है )

शंकर :-        अरे बेटा इधर आओ। तुमने अपने सामने  आते किसी बाबाजी को देखा क्या। वो वहीं कहीं पे किसी घर के बाहर खड़े मिल जाएंगे तुमको बुला लाओगे उनको। अगर वो मिले तो कहना कि आपने जहां से खाना लिया वहां आपको वापस बुलाया है ।

बच्चा :-      लेकिन अंकल वहां तो रास्ता बंद है अगर

                        वो वहां गए होते तो वापस ज़रूर आते ना। और सच कहूं तो मैंने यहां किसी बाबाजी को नहीं देखा सच्ची।       

( शंकर बच्चे की बात सुनकर दंग रह जाता है। )

अगले भाग के लिए बने रहिए


क्रमशः


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