आज़ादी - कहानी भूतिया घर की- भाग-1
आज़ादी - कहानी भूतिया घर की- भाग-1
(सबसे पहले में आपको बता दू मेरी कहानी सम्पूर्ण काल्पनिक नहीं कही जा सकती सच्ची घटना पर आधारित है और मैने अपनी तरफ से भी कुछ जोड़ा है ताकि आपको पसंद आए। मेरा उद्देश्य किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है... उम्मीद है आपको मेरी लिखी हुई कहानी पसंद आएगी...) थोड़ा जल्दी जल्दी शुरू करूंगा ताकि आप बोर ना हो पढ़ते वक्त।
सुबह का वक़्त था... ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थी राकेश जी जो कि कहानी के किरदार के पिताजी है घर के बाहर समाचारपत्र लेकर ध्यान से उसको पढ़ रहे थे... तभी उनकी नजर एक खबर पर पड़ती है जो की एक पुराने घर के बारे में होती है जो कि उनके गांव के आस पास के इलाक़े में ही है... वो घर की हवेली से कम भी नहीं होता है काफी खूबसूरत और बड़ा... राकेश जी आगे देखते है कि 50/100 का वो घर केवल 2.50.000 की धनराशि में बिक रहा है... वो तुरंत अपनी पत्नी सुनंदा को बुलाते है।
सुनंदा :- क्या हुआ जी आपने मुझे इतनी ज़ोर से आवाज़ देकर क्यों बुलाया?? कहिए क्या बात हैं..??
राकेश जी :- अरे भाग्यवान बात ही कुछ ऐसी है ये देखो ये खबर अपने गांव के ही पास ही के किसी इलाक़े की है वहा एक घर बिकाऊ है 50/100 का घर केवल 2.50.000 में काफी सस्ता सौदा है। क्या कहती हो ख़रीद ले ये अपने बेटे के लिए..??
सुनंदा :- जी ये भी कोई पूछने की बात है मेरे बच्चे के लिए तो घर क्या में तो जान भी देदू।
राकेश जी :- सुनंदा में क्या सोच रहा था कि ये घर ना ख़रीद के अपने बेटे के नाम कर दू वैसे भी अगले महीने उसका जन्मदिन आ रहा है उसको ये तोहफा काफी पसंद आएगा देख लेना खुशी से पागल हो जाएगा मेरा बेटा।
सुनंदा :- जी मै तो अभी से सोच कर ही खुश हो रही ही की उसकी क्या हालत होगी जब वो इतना बड़ा तोहफा देखेगा।
राकेश जी :- अरे तुम देखती जाओ अभी में इस घर के बारे में आगे की जानकारियां लेता हूं घर के मालिक से बात करने की कोशिश करता ही और जल्द से जल्द इसको खरीदने की तैयारी शुरू।
सुनंदा :- में क्या कहती हूं जब घर हमारा हो जाए तब इस घर को देखने और इसकी साफ सफाई करने हम खुद जाएंगे यहां से नौकरों को लेकर।
राकेश जी :- हा हा ज़रूर हम ज़रूर जाएंगे वहा बस 4-5 दिन और इंतज़ार करो फिर मिठाईयां बांटना तुम।
सुनंदा :- में अभी ये खुश खबर सुनीता को सुनती हूं वो भी ये सुन कर खुश हो जाएगी।
(सुनीता जो की सुनंदा की छोटी बहन होती है)
राकेश जी :- अरे इतनी जल्दी भी क्या है... थोड़ा सब्र करो ना वैसे ही घर हमारा ही होगा 100% बस मुझे थोड़ी जानकारी लेने दो घर से
संबंधित।
सुनंदा :- वो आप देख लीजिए जी में अभी आती हूं।
(फिर सुनंदा घर के अंदर जाती है)
दूसरी तरफ घर के कुछ नौकर भी इसी बात को सुन के खुश थे तो कुछ दुखी भी जो इस घर की कहानी को टूटा फूटा लेकिन जानते ज़रूर थे। मन ही मन उनका मानना था कि कुछ तो ज़रूर बुरा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए।
वो भागते हुए घर में जाती है और सुनीता को फोन करती है।
( फोन की बातचीत )
सुनीता फोन उठती है...
सुनीता :- जय श्री कृष्णा दीदी।
सुनंदा :- जय श्री कृष्णा सुनू ( सुनंदा प्यार से सुनीता को सुनू कहकर पुकारते है)
सुनीता :- ओह क्या बात है आज इतना प्यार उमड़ रहा है। ज़रूर कोई ना कोई काम होगा मुझसे । (हस्ते हुए)
सुनंदा :- हा है ना मेरी बहन। आज अखबार में खबर आयी है एक घर की कृष्णा जी की कृपा से काफी सस्ता भी है और हमने सोचा है कि हम उसको खरीद ले।
सुनीता :- अरे वाह यह तो काफी खुशी की बात है। घर पे मिठाइयां बटवाओ ।
सुनंदा :- हा क्यों ना ज़रूर। पहले एक काम करो तुम आजाओ यहां हम साथ में घर देखने चलेंगे।
सुनीता :- हा दीदी में ज़रूर आऊंगी। पहले ये बताओ आना कब है और नया घर किस जगह पर है??
सुनंदा :- एक काम करो तुम संदीप जी (सुनीता के पती) के साथ कल ही यहां आजाओं फिर साथ चलेंगे। बाकी बातें बाद में करेंगे।
सुनीता :- जी ठीक है दीदी में कल ही वहां आजाती हूं आपके पास।
(इतनी बात करके दोनों फोन रख देते है)
सुनंदा :- ( मन ही मन में ) काफी समय निकाल गया है मेरे बच्चे के लिए कुछ अच्छा सा उपहार लिए हुए। इस बार उसके लिए इतना बड़ा उपहार भी हो जाएगा और उसको यह बुला के उससे मिल भी लूंगी।
(आस पास के नौकर सुनंदा जी को देख के काफी खुश होते है। तो कुछ परेशान)
थोड़ी देर बार रसोईघर में कुछ नौकर इक्कट्ठे होते है।
जिनको एक शंकर नाम के माली नी बुलाया होता है।
जिनमे कुछ बड़े होते जैसे ( शंकर के बाद - रामलाल संजय जितेंद्र आदि)
जितेंद्र :- कहो शंकर तुमने हम सबको यहां ऐसे क्यों बुलाया??
शंकर :- देखो मेरी बात ध्यान से सुनना फिर कुछ बोलना। मालकिन की आज बात सुनी मैंने मालिक ने कोई नया घर देखा है छोटे मालिक के लिए। और जितना में जनता हूं उस घर के बारे में उस हिसाब से वो घर शापित है।
संजय :- क्या?? तुम्हे पता भी है तुम क्या कह रहे हो??
शंकर :- हा संजय मालिक जिस घर को खरीदने कि बात कर रहे है उसकी कुछ कहानियां सुनी सुनाई हुई ध्यान में है मेरे ये घर काफी सालों से शापित है। और सुना है कि मालिक से पहले भी काफी लोगो ने उस घर को खरीदा मगर 5 माह के अंदर ही घर खाली कर के सबको जाना पड़ा।
संजय :- मगर ऐसा क्यों??
शंकर :- वो तो मुझे भी नहीं पता दोस्त मगर बात तो कुछ ऐसी ही सुनी है मैने।
जितेंद्र :- अच्छा.. तो तुम ही बताओ शंकर अब हमे क्या करना चाहिए??
शंकर :- देखो में है नहीं कहता हूं यह काम छोड़ के चले जाए.. मगर अब अपनी जान खतरे में भी नहीं डालना चाहते आखिर हम लोगो के भी तो बीवी बच्चे है।
जितेंद्र :- तुम सही कहते हो शंकर.. कहीं छोटे मालिक वहा रहने गए और उनके साथ साथ श्राप का असर हम सबको हुआ तो??
संजय :- शंकर और जितेंद्र तुम दोनो डरो मत। मालकिन हमको वहा ज़रूर ले जाएगी हम वहा जाएंगे और देखते वहा सब कुछ ठीक है या नहीं अगर शंकर के कहने के मुताबिक़ अगर वहा कुछ ठीक नहीं हुआ तो हम सोचेंगे यह काम करने के बारे में।
शंकर :- ठीक है तो ये तय रहा।
जितेंद्र :- हा हा ठीक है। अच्छा निर्णय है तुम्हारा।
संजय :- एक काम करो शंकर तुम यह कि नौकरानियों को भी यह बात बता दो हम तो बच भी जाएंगे उन्हें कौन बचाएगा।
शंकर :- तुम ठीक कहते हो।
संजय :- तुम क्या सोच रहे हो रामलाल ?
रामलाल :- मेरे ख्याल से शंकर सच कह रहा है वो घर कहीं कहीं ना कहीं मुझे भी अजीब सा प्रतीत होता है। क्युकी हवेली जितना बड़ा घर और उसका दाम बोहोत ही काम। हो ना हो कुछ तो बोहोत अजीब है और बुरा भी।
शंकर :- हा दोस्त मुझे भी कुछ ठीक नहीं लग रहा है।
रामलाल :- ठीक है शंकर तुम सबको सावधान करदो की अपनी सुरक्षा के लिए तैयार रहे।
शंकर :- हा ज़रूर।
रामलाल :- जितेंद्र और संजय तुम जाने कि तैयारियों में रहो मालकिन के हुकुम पर हमे निकालना होगा।
( इसके बाद शंकर सबको बता देता है कि सबको अपनी सुरक्षा खुद करनी है। हम इतने दावे के साथ नहीं कह सकते लेकिन अफवाहों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते।)
अगले भाग के लिए बने रहे।