आज का कालिदास

आज का कालिदास

2 mins
414


शादी की गहमागहमी में मेरी नजरें पंकज दुबे को ढूँढ रही थीं। पूरे बीस साल हो गये थे पंकज से मिले हुए, दूर के रिश्ते से वह भतीजा लगता था पर उम्र में मुश्किल से साल-डेढ़ साल का ही फर्क था। हैरान थी कि आज बीस साल के बाद होने वाली मुलाकात के लिए जहाँ मैं इतनी व्याकुल थी पर पंकज, उसे आये तो दस घंटे हो चुके हैं,

अब तक अपनी पसंदीदा बुआ से मिलने नहीं आया।

लगभग बीस लोगों के हमारे ग्रुप में हम सब कितना खुलकर बातचीत करते थे और यह पंकज तो मेरा मुरीद ही था। जब भी मिलते थे, यह बुआ-बुआ कहता पीछा ही नहीं छोड़ता था और आज मिलना भी नहीं चाहता था। साक्षी थी मैं, उसके रोजी-रोटी की स्ट्रगल की।

कभी यह धंधा, कभी वह काम। मेहनत तो भरपूर करता था पर जमता ही नहीं था बंदे का कोई काम।

फिर सुना कि मुबंई चला गया था और वहाँ के मानसिक रूप से प्रताड़ित धन्ना सेठों

को शांति के लिए योगा सिखाने लगा था और फिर सुना कि उसके योगा का धंधा मजबूती से जम चुका है।

मैं उससे यही जानने के लिए आतुर थी कि जिसे योग का तनिक भी ज्ञान नहीं था वह कैसे लोगों को ठग रहा था ?

तभी नजर पड़ी पंकज पर, न तो उस समय पहले सी मैं थी और न पंकज, वह खिलंदड़ा लड़का, कितना धीर-गंभीर, कुर्ता-पायजामें में, माथे पर लाल लंबा तिलक लगाए हुए, हाव-भाव में कहीं से भी पहले की झलक नहीं थी। इतना बदलाव ...

उसकी भी नजर मुझ पर पड़ी, उसने अपने दोंनों हाथ जोड़ नमस्कार किया। अच्छा...ढ़ोंग करते-करते आदत हो गई है...मैंने सोचा।

मैं ही आगे बढ़ी...बहुत बदल गये हो पंकज..वह तो रहे ही नहीं...योगी बने घूम रहे हो ?

उसने एक गहन दृष्टि से देखा मुझे और कहा, हाँ बुआजी..सही समझ रही हैं आप , बदल गया हूँ मैं, और मैं भी समझ रहा हूँ कि आपके मन में क्या चल रहा है। मजाक समझ मैं दो-चार मुद्राओं को सीख योग

सिखाने चला था...पर इन बीस बरसों के अभ्यास में योग ने मुझे अपने में समाहित कर लिया है... उसने पुनः हाथ जोड़े और स्थिर चाल से आगे बढ़ गया।

मैं चित्रलिखित सी अवाक, वहीं खड़े रह गई.. ..ज्ञान की गंगा का चमत्कार जो देख रही थीं...अभी-अभी देखा ...आज के कालिदास को...


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama