Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

3.8  

Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

आधे अंधेरे का सच

आधे अंधेरे का सच

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"दादी माँ ! यह छोटी दादी क्या कर रही हैं ?" दमयंती की देवरानी को गोबर से पूरे घर को घेरता देखकर उनकी पोती निधि ने पूछा।

"आज नागपंचमी है तो पूजा की तैयारी कर रही है तुम्हारी छोटी दादी।" दमयंती ने कहा।

"पूजा के लिए तो ड्योढ़ी पर साँप की तस्वीर बना हुआ है दादी। पूरे घर के दीवाल पर तो केवल लकीर खींच रही हैं। आपने ही बताया था कि सावन मास या यूँ कहें चौमासा में अक्सर साँप निकलते हैं... हल-कुदाल से कार्य के दौरान साँप चोटिल हो सकते हैं...!" निधि ने कहा।

"बीच-बीच में सांप का खाका खींच रही है... ऐसा ही तुम्हारे दादा की दादी ने बताया था।" दमयंती ने कहा।

"दादा की दादी के काल में पढ़ाई कम थी न दादी। उस समय पूरे मिट्टी का दीवाल होता था। गोबर लगाना मजबूती देता होगा। अभी डिस्टेम्पर वाले दीवाल पर गोबर का घेरा?

नित्य सुबह सूरज के उगने पर नयी बातें उस पर लिखा जा सकता है... हम विज्ञान माने या..," निधि की बातें पूरी नहीं हो पायी।

"छोटकी भाभी हमरो थोड़ा दूध दीं।" दमयंती के देवर के सहायक ने निधि पर नजर गड़ाए कहा।

"दादी ! कितने वर्षों से छोटे दादा के आस्तीन में पल रहे हैं ये सहायक अंकल ?" निधि ने पूछा।


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