आडम्बर
आडम्बर
ठाकुर की हवेली में आज मुद्दतों बाद चहल-पहल थी। दूरदराज से ब्राह्मणों व अन्य लोगों का आवागमन जारी था ।छोटे ठाकुर वीरेंद्र सिंह की बीच-बीच मे रौबदार आवाज "" कुत्तों को गोश्त खिला दिया ,घोड़ों की मालिश अच्छी तरह से करना गठीली ,चमकदार काठी पर सवारी का आनंद ही कुछ और है ""। नौकर- चाकरों की फौज सुबह से ही इधर उधर भाग दौड़ कर रही थी ।ठाकुर ने आये हुए ब्राह्मणों का सत्कार सहित पैर धोकर ,पूजकर, तिलक लगाकर, गद्दीदार आसन पर बिठाया ।
सभी से हाथ जोड़कर उदासीनता भरे स्वर में ठाकुर विनती कर रहा था"" कृपया सभी ब्राह्मण देव सुरूचि पूर्वक भोजन ग्रहण करें ।आज मां का श्राद्ध है स्वर्ग में उनकी आत्मा तृप्त होगी।"ठाकुर ने स्वयं अपने हाथों से उन सभी को एक से एक बढ़कर पकवान मनवार के साथ व यथा जोर खिलाए ।
ठाकुर की मातृ भक्ति देखकर ब्राह्मण गण प्रभावित हुए "ऐसा बेटा भगवान सबको दे"" ऐसा आशीर्वाद देकर दान दक्षिणा लेकर चले गए।
रह गए उसी गांव के केवल पंडित राजारामजी जो इन सब क्रियाकलापों को देख रहे थे । उनके क्लांत मन में संताप था ।जीते जी मां तो एक-एक दाने के लिए तरस तरस कर मर गई और अब उस पंचतत्व में विलीन मां के लिए आज छप्पन भोग, इतना आडंबर!
उन्हें वह शाम याद आ गई जब बेहोश ठकुराइन को नदी के किनारे से उनकी बेटी उठा कर लाई थी । दो दिन से खाना न मिलने के कारण वह बेहोश हो गई थी ।बेटी ने बिना सोचे समझे तुरंत ठाकुर जी के लिए बनाया हुआ प्रसाद , थाली में परोस कर उन्हें खिला दिया। सोचा भी नहीं ठाकुर जी भूखे रह जाएंगे ।मुझे अच्छा नहीं लगा था।
मेरे पूछने पर उसने कहा "" बाबा पत्थर के ठाकुर जी तो एक समय का उपवास कर सकते हैं पर उनकी हाड़ -मांस की रचना भूखी रह जाय क्या उन्हें अच्छा लगेगा और क्या बाबा हम भी भूखे को छोड़कर भोजन ग्रहण कर सकते हैं ?
जितना भी है अपने पास थोड़ा ही सही हम मिल बांट कर खा लेंगें। समय इसी तरह बीतता गया। तकरीबन रोज ही पंडित जी की बेटी ठकुराइन को भोजन कराती रही
आज पंडित जी को अपनी बेटी पर गर्व महसूस हो रहा था ।आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। उनकी बिटिया ने जीते जी ही ठकुराइन का तर्पण कर दिया था !