आ मिल मुझे या तो हौसला अता दे

आ मिल मुझे या तो हौसला अता दे

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कैसे भूल जाऊं मै तुमको माँ ,बिन तेरे जिंदगी का कोई मतलब नहीं, ऐसा क्यों लगने लगा है अब।

तुम ही तो थी जिससे बातें करके दिल को सुकून मिलता था माँ, कैसे भूल जाऊं और कैसे तुम्हे ना याद करने की कसम खा लूं।


क्यों बिन तेरे मेरी दुनिया उदास है माँ,

बिन तेरे क्यों ये जीवन निराश है माँ।

सब कुछ तो है, अधूरापन भी है संलिप्त पर,

हर लम्हे मे जिंदगी के,तेरे लौटने की आस है माँ।।


तुम कैसे भूल सकती हो मुझे, जबकि मेरे सुबह के नाश्ते दोपहर के खाने और रात के भूख मिटने की खबर सुने बिना कभी खाया नहीं तुमने।क्यों पता नही क्यों तुम्हारी याद मेम पत्थर पर सर पटक-पटक कर मर जाने का मन करता है। पता नहीं क्यों तुम्हारे बिना सर कुचले हुए सांप की तरह तड़पन महसूस करता हूं मैं कभी कभी।

तुम्हारा सच में माँ, तुम्हारा कोई पर्याय नहीं है इस धरती पर ,तुम्हारे जाने के बाद मुझे सांत्वना देने वालों को भी मैंने तुम्हारी याद मे तड़पते देखा है।


माँ हां बोल मुझसे या वो खता बता दे,

क्यों छोड़ गई मुझे वो मसला बता दे।

बोल किसके बच्चे उसे दुख नही देते माँ,

आकर मिल मुझे या तो हौसला अता दे।।


दिनभर की थकान के बाद कार्यालय से वापस आने पर पता नहीं क्यों आज भी लगता है कि अम्मा की मालिश से सब ठीक हो जाएगा, तुम्हारे होने का कुछ पलों का एहसास ही मुझे इतनी खुशियां क्यों दे जाता है जिसका बयां अत्यंत सुखदायी होता है माँ।क्यों ऐसा कोई रास्ता नहीं है ?जिस पर चलकर मै पहुंच सकता तुम तक।मेरा घर से दूर रहना कितना रूलाता था ना तुम्हें, अब क्यों नहीं रोती तुम मेरे लिए, अब मैं अकेला ही क्यों रोता हूं तुम्हारे लिए ।माँ बहुत तकलीफ होती है माँ तुमको याद करके। ये ठीक है कि पहले किसी के भी मरने पर दिक्कत कम होती थी पर अब किसी का भी मरना माँ तुम्हारी याद दिलाता है।

कैसे हर किसी की मरने वाली माँ में मुझे तुम्हारा अक्स नजर आता है माँ, मै क्यों नही समझा पाता अपने आप को की मेरी माँ को गये एक वर्ष से भी ज्यादा हो गया है।

माँ क्यों तुम सपने मे भी नहीं आती। मुझे पता है कि मेरी किस्मत में तुम्हारी याद में अब तड़प ही लिखा है शायद।मुझे सच मे नहीं पता था नहीं तो मै तुम्हारे साथ ही चला जाता कम से कम ये तड़प तो नहीं आती मेरे हिस्से ।

तुम्हारा आखिरी बार मुझको एक टक देखते रहना ,अभी भी तुम्हारा मुझसे कुछ कहने की ललक और उसको न समझ पाना मुझे अपने आप को दोषी करार देने को मजबूर करता है पर शायद यही सजा मुकर्रर किया होगा तुमने मेरे गुनाहों के एवज में। तुमको परेशान करते हुए मैंने ये कभी नहीं सोचा था कि तुम ऐसे मुझसे दामन छुड़ाकर चली जाओगी कि मेरी मौत भी मिला नहीं पायेगी तुमसे।

अत्यंत तड़प असीमित पीड़ा के दौरान भी मन तुमको याद करना नहीं भूलता माँ, तुम्हारा होना बहुत था मेरे खातिर, तुम्हारे रहते किसी भी तकलीफ में तुमको फोन करके रो लेने से सारी परेशानियां खत्म सी महसूस होने लगती थीं।

अब मै क्या सांत्वना दूं अपने आप को कि कब और कहां मै तुमसे मिल सकूंगा माँ?


तेरा चुप रहना मेरे ज़हन मे क्या बैठ गया,

इतनी आवाज़ें तुझे दी कि गला बैठ गया।


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