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Lalita Vimee

Tragedy

4  

Lalita Vimee

Tragedy

ज़िंदगी

ज़िंदगी

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घटनाओं सी घट गई,

कभी पास मेरे रही नहीं।।


हादसों सी गुज़र गई,

 कभी रूबरू हुई नहीं।।


फ़िज़ाओं सी बहती रही,

इक पल को रूकी नहीं।।


ख़िज़ाँ सी सूखती रही,

शिकवा कभी बनी नहीं।।


चरागों सी जलती र ही,

 रोशन कभी हुई नहीं।।


रंगों में मिलती रही,

रंग खुद बनी नहीं।।


तुझसे यही गिला है ज़िंदगी,

तूं मेरी कभी हुई नहीं।।


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