STORYMIRROR

डॉ. रंजना वर्मा

Abstract

3  

डॉ. रंजना वर्मा

Abstract

ज़िंदगी

ज़िंदगी

1 min
288

जिंदगी

एक लम्हा

मुहब्बत से भरा

कभी वस्ल की खुशी 

तो कभी हिज्र की तड़प।


कभी कशिश भरे नज़ारे

तो कभी छूटता हुआ दामन

हर रात के आगोश में

छिपी हुई है।

 

प्यारी सी सहर

जो देती है

जिंदगी का पैग़ाम

जगा देती है

जिंदा रहने का जज़्बा

खिला देती है।


चमन के सभी फूलों के 

उदास मुखड़े

दे जाती हैं

खुशबू की सौगात

और बदल जाती है

तपती दोपहर में।


फिर

दोपहर शाम

और शाम ढल कर

रात में बदलती है

जिंदगी

बस यूँ ही चलती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract