ज़िंदगी
ज़िंदगी
जिंदगी
एक लम्हा
मुहब्बत से भरा
कभी वस्ल की खुशी
तो कभी हिज्र की तड़प।
कभी कशिश भरे नज़ारे
तो कभी छूटता हुआ दामन
हर रात के आगोश में
छिपी हुई है।
प्यारी सी सहर
जो देती है
जिंदगी का पैग़ाम
जगा देती है
जिंदा रहने का जज़्बा
खिला देती है।
चमन के सभी फूलों के
उदास मुखड़े
दे जाती हैं
खुशबू की सौगात
और बदल जाती है
तपती दोपहर में।
फिर
दोपहर शाम
और शाम ढल कर
रात में बदलती है
जिंदगी
बस यूँ ही चलती है।
