ज़िन्दगी सिर्फ रफ़्तार नहीं
ज़िन्दगी सिर्फ रफ़्तार नहीं
ज़िन्दगी जब जब कभी
अपनी सही रफ़्तार पकड़ लेती है
कुछ पल ऐसे भी आते हैं
वह कुछ और बताना चाहती है
हम कल्पनाओं में जीना चाहते हैं
वह "यथार्थ " में जीना शायद सिखाती है
मुश्किल होता है यह तय करना
कि हममें से किसकी क्या हस्ती है
क्या हम ज़िन्दगी के लिए जीते हैं
या वह हमारे लिए जीती है
विचार निरंतर बदलते जाते हैं
न जाने वह क्या बतलाना चाहती है
शायद उसके होंठों पर भी लफ्ज़ रुके होते हैं
कुछ अनमोल रत्न दबाये वह भी रखती है
ज़िन्दगी निरंतर चलते रहना ही है
यह तथ्य वह नहीं झुठलाना चाहती है
पर थमा हुआ है जो परिस्थितयों से
कुछ उसकी भी सुनो ,यही बताना चाहती है
क्या सही है कल्पनाओं के सहारे जीना
शायद कुछ ऐसा बताना चाहती है
थके बिना, बिना रुके, बिना थमे चलना
सुनो मेरे अज़ीज़, यह रफ़्तार जज़्बाती है
कुछ कहो कुछ सुनो मधुर धारा बहती रहे
असल में "वही" ज़िन्दगी कहलाती है।