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kritika sehgal

Romance

4  

kritika sehgal

Romance

ज़िन्दा तो मैं तब भी थी

ज़िन्दा तो मैं तब भी थी

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ज़िन्दा तो मैं तब भी थी जब उनसे मिली नहीं थी, मगर उनसे मिलने के बाद ज़िन्दगी जीने का मतलब समझ आने लगा था 

जब पहली बार उन्होने मुझे उस प्यार भरी नज़र से देखा, उनकी आँखों में सिर्फ मैं ही नहीं बल्की मुझसे जुडा एक एक पल मुझे नज़र आने लगा था 

जब उन्होने अपने हाथों में मेरा हाथ थामा तो मालूम हुआ कि मैं अब खुद की रही ही नहीं, ब्ल्की मेरे अंदर धड़कती हुई एक एक धड़कन ओर खंकती हुई एक एक सांस उनकी हो गयी है 

वो आज में जीना चाहते थे ओर मैं उनके आज को ओर बेहतर बनाना चाहती थी 

वो वक़्त के पहिये के साथ कदम से कदम मिलाना चाहते थे ओर मैं उनके मकसद को अपना सपना बनाना चाहती थी 

पता है हमने कभी एक दूसरे से अपने दिल की बात नहीं कही, उन्होने कभी करनी चाही नहीं ओर मैने कहा भी नहीं 

मैं नहीं जानती कि क्या उन्होने मेरी आँखों में बसी वो शर्म देखी है जो उन्हे देख कर झुकती है...मैं नहीं जानती

मैं बस इतना जानती हूँयय की उनके शब्द कभी मुझे उस प्यार का एहसास नहीं दिला सकते ज़ितना की उनकी खामोशी 

उनकी नजरें, उनका यूँ मुझे देखना ओर कभी अन्देखा करना अपने आप में ही एक ईशारा है 

पर इसका ये मतलब नहीं कि मैं जानना नहीं चाहती 

मैं चाहती हू पर ये उन्हे भी पता है कि मैं खुद से कभी कहुंगी नहीं 

क्यूंकी मेरा सपना उनहे खुश रखना है चाहे उसके लिए मुझे उनके आज को ही मेरा कल बनाना पडे  

अजब बात ये है कि हम एक दूसरे से जुडे तो हैं पर कभी एक दूसरे के हो नहीं सकते 

पर शायद उसकी ज़रूरत भी नहीं...

ज़रूरत है तो सिर्फ यह यकीं करने कि के चाहे कुछ भी हो जाए उनकी खामोशी ओर मेरे ज़ाजबात एक दूसरे को ऐसे ही चाहते रहेंगे जैसे उनका आज ओर मेरा कल 

मैं उनकी क्या हू ओर वो मेरे कौन हैं ?

जब मैंने ये खुद से पुछा तो मेरे मन से एक ही जवाब आने लगा था 

ज़िन्दा तो मैं तब भी थी जब उनसे मिली नहीं थी, मगर उनसे मिलने के बाद ज़िन्दगी जीने का मतलब समझ आने लगा था।


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