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kritika sehgal

Tragedy

3  

kritika sehgal

Tragedy

शायद वो मेरा कभी था ही नहीं...

शायद वो मेरा कभी था ही नहीं...

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शायद वो मेरा कभी था ही नहीं...

मैं उसे सिर्फ खुद का समझ रही थी 


पर मैं भूल गयी थी कि किसी को खुद का समझने में

और उसका तुम्हारा होने में बहुत अंतर है 


अंतर है उन्न अनगिनत सवालों का जिसका

जवाब कभी बोल कर नहीं दिया जा सकता, 

क्यूंकी शब्द सिर्फ हमें उन्न सवालों के कटघरे में खड़ा करते हैं 


अंतर है उस एहसास का जो हमें ये यकीं दिलाते हैं

कि हमारा रिश्ता किसी सवाल का मोहताज नहीं 

क्यूंकी वो तो सिर्फ प्यार करना जानता है 


अंतर है उस विश्वास का कि उसकी उंगलियां

मेरे हाथों के बीच में बनी उमीदों को कभी नहीं तोडेंगी 

क्यूंकी वो उंगलियां उस स्पर्श का कभी हिसाब नहीं करती 

वो जानती है कि किसी से शिद्धत से मोहब्बत करना क्या होता है 


पर अफसोस..हर मोहब्बत पूरी नहीं होती,

कुछ ऐसे ही अधूरी रह जाती हैं, इस कविता की तरह 

क्यूंकी वो जानती है कि इसका अंत शायद

इसके अधूरे रह जाने से ज़्यादा दर्द भरा होगा 


मेरे दर्द ओर प्यार का रिश्ता बिलकुल वैसा है जैसा उसका और मेरा 

मैं उसकी तो हो गयी पर वो मेरा हो कर भी मेरा ना हो पाया

खैर कोई बात नहीं, शायद वो मेरा कभी था ही नहीं!.



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