युं जो दिल खोलकर मिल रही हो तुम
युं जो दिल खोलकर मिल रही हो तुम
यूँ जो दिल खोलकर मिल रही हो तुम
लगता है के अब मैं तुमको बिल्कुल याद नही
ऐसा होता है निकाह के बाद अक्सर
ऐसा होने मे कोइ गलत बात नही
अब मेरे खयालों से अज़ाद हो तुम
किसी और के साथ आबाद हो तुम
पर तुम पर ही खत्म होता है इश्क़ मेरा
मेरे पहले मोहब्बत की याद हो तुम
मैं अचरज़ मे हूँ तुम ने ये क्या कर दिया
अपने बच्चे का नाम मुझपर रख दिया
क्या कहकर शौहर कैसे मनाया होगा
ना जाने कौन सा किस्सा सुनाया होगा
अब ये सोचता हूँ मैं रोज़ क्युं हिचकता हूँ
पानी भी जो पीता हूँ तो क्युं सरकता हूँ
क्या खुब लिया है बदला मेरी जुदाई का
मुझे हिस्सा बनालिया है अपनी तनहाई का
चलो फिर मैं भी अपना घर बसाता हूँ
अपने किस्मत को मैं भी आजमाता हूँ
कभी खिले कोइ कली या फूल हो पैदा
उसे फिर मैं भी तेरे नाम से बुलाता हूँ।