युगपुरुष थे राम
युगपुरुष थे राम
युगपुरुष थे इस धरा पर राम दीन के पालक ।
धर्म हित में पापियों के वही थे दण्ड दायक ।।
आज्ञाकारी थे गुरू के भक्त वह थे तेजधारी ।
पितु बचन पालक गये वन राम अवतारी ।।
मिल केवट निषाद से ऋषियों को दिया है मोद।
खरदूषण विराध कबन्ध को दिया है परमधाम ।।
सूर्पनखा ने ही कराया बैदेही के हरण का काम।
हनुमान पा हत वालि को बनाए सुग्रीव राजा ।।
गोद ले राम की जटायु की क्रिया वे अकुलाए ।
जूठे शबरी के बेर राम नें थे बङे चाव से खाए ।।
उदधि लांघ दशानन के मान को मिलाया धूल ।
विभीषण को दे राज खिलाया है धर्म का फूल ।।
चौदह वर्ष बाद फिर से राम नें अवध है पाया ।
मिलकर अपनों से अश्रु की धार नयनों से फूटी ।।
मिली सबको खुशियां समय ने जो आ के लूटी ।
राम राज्य में किए जन- जन को राम सुखारी ।।