युद्ध
युद्ध
इंसानियत के खिलाफ है युद्ध
लेती है ये सदा बेकुसरो की जान
कितने परिवार मिट जाते इस युद्ध में
मिटा देती है ये युद्ध मानवता की पहचान।
जनधन की हानि ही नहीं होती
युद्ध में प्रयुक्त विस्फोटक पदार्थों से
पर्यावरण को भी भुगतना पड़ता इसमें
जिसके होते हैं भविष्य में घातक परिणाम।
कितनी कोख उजड़ती मांँओं की
और कितने ही बच्चे हो जाते अनाथ
जीत चाहे इसमें धर्म की हो या अधर्म की
कोई धर्म नहीं मरता इसमें केवल मरता इंसान।
युद्ध वो बिभिषिका है जो सदैव ही
मानव का समाज का करती है विनाश
युद्ध तो हो जाता समाप्त किंतु उसके बाद
जो गिरते हैं आंँसू क्या है उसका कोई समाधान।
समाप्त होकर भी कहांँ समाप्त होता
प्रतिशोध एक और युद्ध को देता है जन्म
किसी भी युद्ध का सबसे बड़ा अभिशाप यही
एक बार नहीं अनेकों बार लेता है यह युद्ध जान।
हारा हुआ पक्ष सदैव मौका ढूंढता
विपक्ष को कैसे किया जाए नेस्तनाबूद
युद्ध भावना ही ख़त्म कर देती है इंसानियत
इस युद्ध से कभी किसी का नहीं होता कल्याण।
एक युद्ध दूसरे युद्ध का कारण बनता
सदियों तक यही चक्र फिर है चलता रहता
जहांँ शांति से वार्ता हो सके युद्ध की क्या ज़रूरत
भविष्य में कोई युद्ध ही ना हो तो समझ जाए इंसान।