योग-साधना
योग-साधना
साधना पथ पर गर चलना तुमको, योग-साधना करनी होगी।
अष्टांग योग तुम धारण कर लो, जीवन का असली ध्येय तुम पालो।।
पहली सीढ़ी "यम" है कहलाती, सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाती।
अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह को तुम जानो, परम धर्म को तुम पहचानो।।
दूसरी सीढ़ी "नियम" है कहलाती, शौच, संतोष का पाठ है पढ़ाती।
तप, स्वाध्याय, समर्पण तुम जानो, ईश्वर में गुरु को तुम मानो।।
तीसरी सीढ़ी "आसन" है कहलाती, शारीरिक स्थिति का भान है कराती।
स्थिर सुखासनम से ध्यान है बनता, सहजता से ईश्वर है मिलता।।
चौथी सीढ़ी "प्राणायाम" कहलाती, स्नायु केंद्रों पर प्रभाव जमाती।
श्वास, प्रश्वाश वायु ही जीवन, रेचक, पूरक कुंभक ही संजीवन।।
पंचम सीढ़ी "प्रत्याहार" कहलाती, इंद्रियों को अनुकूल है बनाती।
चित्त स्वरूप अनुसरण है करती, विषय-वासना से दूर है भगाती।।
छठी सीढ़ी "धारणा" है कहलाती, चिंतन वस्तु को पुख्ता कराती।
केंद्री भूत मन है बन जाता, ध्येय वस्तु हृदय में ही पाता।।
सप्तम सीढ़ी "ध्यान" है कहलाती, समूल वृत्तियों का नाश कराती।
निर्विचार मन है बन जाता, आत्मानुभूति का आनंद है पाता।।
अष्टम सीढ़ी "समाधि" है कहलाती, ध्यान की गहरी अवस्था कहलाती।
स्थूल शरीर का भान न रहता, सूक्ष्म शरीर आत्मा में ही रमता।।