" यह कैसे धागे अंधेरों के "
" यह कैसे धागे अंधेरों के "


यह कैसे धागे अंधेरों के,
तेरी यादों के मोम से लिपट
जाने क्या कर रहे हैं साजिशें
बन मोमबत्ती धक जल उठी हूँ,
ना बुझा पाएंगी अब यह बारिशें
आसमां में तुम्हारे भी तो बारिश हो रही होगी
कुछ बूँदें मेरी यादों की तुम तक पहुंची तो होंगी
मैं विरह की तपन में मोम सी पिघल रही हूँ
मुझे इसी तपन में थाम लो,
पिघली पिघली तेरी रेखाओं में घुल जाऊंगी कहीं
बैठ बादलों पर आयी थी उस दिन बारिश बन
पर झरोखा जो तुमने बंद कर लिया
उल्टे पांव लौट में चली गयी,
जाते-जाते बीती यादों का एक टुकड़ा
धूप का पास झरोखे मैं छोड़ गयी।