STORYMIRROR

Mukesh Bissa

Abstract

3  

Mukesh Bissa

Abstract

ये शहर

ये शहर

1 min
270

जब से हुआ 

है प्रवेश 

मेरा इस शहर में

तब से फंस 

गया हूं

मैं एक 

चक्रव्यूह में।


कर रहां हूँ

तलाश तरीका

अपनाने का

साम-दाम

दंड-भेद का।


आदमी हर 

इस जगह में

लगा हुआ है

एक 

विचित्र सी

उधेड़ बुन में।


गलियां जैसी

हैं इस शहर की

सिमटी हुई

वैसे ही

संकरे इनके

मन के विचार है।


हर कोई 

किसी के

जीवन में

कतराता है

प्रवेश करने से।


आता है

अपने रास्ते और

अपने ही रास्ते 

चला जाता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract