STORYMIRROR

Jhilmil Sitara

Inspirational

3  

Jhilmil Sitara

Inspirational

ये मन बिना डोर बिना बंधन

ये मन बिना डोर बिना बंधन

1 min
214

ये मन हमारा ,

हवाओं में उड़ता है 

पहाड़ों पर बिना रुके चढ़ता है

खुले मैदानों में बाहें फैलाए दौड़ता है

समंदर के लहरों के साथ - साथ बहता है

पेड़ की शाखाओं पर आंखें मूंदे झूलता है

फूल बनने को बेताब कलियों सा खिलता है

रंग-बिरंगी तितलियों के हर रंग में रंगता है

चट्टानों से गिरती झरनों - सा बेखौफ़ झरता है

बादलों में चांद की तरह छुपता - निकलता है

बारिश के पानी में कागज़ की नाव बन तैरता है

सरसों के पीले फूलों पर भंवरा बना फिरता है

धान की बालियों पर भोर की लाली - सा ठहरता है

मासूम निश्छल बच्चों की तरह खिलखिलाता है

सपनों के आसमान पर तारों सा टिमटिमाता है

हां, ये मन जितना आज़ाद रहना चाहे,

तन‌ उतना ही बंधनों में जकड़ा रहता है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational