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Meenakshi Kilawat

Abstract

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Meenakshi Kilawat

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ये ख्वाहिशें ही तो है

ये ख्वाहिशें ही तो है

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ये ख्वाहिशें ही तो है

हमारे जान की असल दुश्मन

यह ख्वाहिशें ना होती जिंदगी में तो

बन जाता हमारा स्वर्ग जैसा जीवन।


अच्छा बुरा सोच सोच कर

किया जानको हमने ही खतमं

ना होती यह सोच तो

कबका छूट न जाता हमारा अहमं।


सुबह शाम वही काम

ना करते हम मनका चिंतन

सर से पानी गुजर जाता है ,जब

छोड़ ही देते हम हमारा वतन।


मुस्कुराहट भी आती जाती है

हसना भी तो अब हम भूल जाते हैं

बैठे-बैठे जीवनका मोल गिनाकर

एहसास तो सबको दे ही जाते हैं।


हर चीज की जरूरत है यहां

रखना क्या चाहते हो

और छोड़ना क्या चाहते हो

क्या है अपने पास रखने के लिए

एक वसूल भी तो खास होता है।


हमने बहुत से पाले है शौक यहां

वही ओढ़ते हैं वही बिछाते हैं

क्या-क्या आफत समेटते हैं पर

सांसों को नहीं हम संभाल पाते हैं।


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