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Ratna Priya

Tragedy

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Ratna Priya

Tragedy

ये कैसा कन्यादान

ये कैसा कन्यादान

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बिक गए घर बिक गए सारे खेत खलिहान

पूरा करने में एक रस्म और बचाने मान सम्मान

ये कैसा कन्यादान


शायद भगवान भी है इस रस्म से अनजान

तभी तो लोग ले रहे रुपए पैसे और मकान

ये कैसा कन्यादान


बचपन में मेहंदी लगे हाथों को देख देख

इठलाना था जिस लड़की का काम

आज उसी मेहंदी का लग रहा है दाम


कैसे इठलाए इन दामों पर सोच रही वह बैठ अकेली

जान 

ये कैसा कन्यादान

जिसकी शादी के सपने थे पिता की शान

उसी पिता की टूटती कमर को देख कैसे खुश रहे वह सुबह शाम

ये कैसा कन्यादान


जरा सा हाथ जल जाने पर जो सर पर उठा ले पूरा आसमान

पूरी जल के भी कैसे जिए वह जिंदगी जो है मौत समान

सोचा नहीं उसके पिता ने ऐसा होगा उसका कन्यादान

क्यों बना ऐसा रस्म क्यों ऐसा सम्मान

क्या ऐसा होता कन्यादान ?

ये कैसा कन्यादान।


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