ये दुनियां कुछ यूं चल पड़ी है
ये दुनियां कुछ यूं चल पड़ी है
ये दुनिया कुछ यूं चल पड़ी है
जिदंगी क्या है , ये भूल
बस मौत की तरफ़ खड़ी है
ये दुनिया......।
ख़ुद को आगे रखने की होड़ है
न जानें अब कितना शोर है ,
दूसरों से जंग तो बाद की बात है
अब तो अपने ही हाथों से
ख़ुद की गर्दन पर तलवार पड़ी है
ये दुनिया.......।
सरहदों में लाशें पड़ी है
न जाने किस बात पर ठनी है,
कुछ यूं शुरू हुआ है
अब मौत का मंज़र,
जीने की अब किसको पड़ी है
ये दुनिया.........।