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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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यादों की गठरी

यादों की गठरी

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यादों की गठरी को

समय की अरगनी पर

टांग कर

सफर का अपना आनन्द है


वही चेहरे हैं

पर रंगत भिन्न हैं

यादों का बोझ हटते ही

चेहरे खिल उठते हैं

जैसा कि खिले हुये हैं।


शिकायतें, गलतफहमियां

थोड़ी दूर जाती हैं

पल भर के लिए ही सही

यादों के बोझ उतर जाने भर से

जहां रास्ते नहीं थे

सरल से रास्ते बन जाते हैं

और सबसे दिलचस्प बात ये

होती है

की ईश्वर भी मिलते हैं 

तो अपने सबसे नये चेहरे में।


जैसे कि मिले हुये हैं

और हम जानते हैं ये भी 

यादों के हुजूम में शामिल हो जाएंगे

यादों के बोझ से अलग होकर चल रहे

सफर के खत्म हो जाने के बाद।


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