यादों के पिंजरे में
यादों के पिंजरे में
मेरे माँ बाबा को जाकर, रे कपोत! देना संदेसा-
सोने के पिंजरे में रहकर, सुखी है बेटी मंजूषा
तन का रोम-रोम पुलकित है, हूक उठे है मन ही मन-
ब्याही थी जिस वीर कुंवर से, निश दिन करे उसे सुमिरन
सीमा से आ गया बुलावा, झटपट ही वे हुए रवाना-
कभी नहीं मंज़ूर उन्हें था, दुश्मन से बस मुंह की खाना
रण-कौशल के सभी पैंतरे, दिखा दिये, शत्रु को मारा-
वीरगति पाई योद्धा ने, अविरल बही रक्त की धारा
बिछुड़ गए स्वामी वो मेरे, मुड़कर भी न देख सके,
नन्हा वीर गोद में आया,आँखें भी न सेंक सके
यौवन के पिंजरे में बैठी, उड़ने की न चाह मुझे-
नन्हे सैनिक को पालूंगी, प्यासे मन की प्यास बुझे
राह चुनी है मैंने खुद ही, सीमाबद्ध उसूलों की-
कैद रहे ज्यों गुल की खुशबू, चुभन सहे है शूलों की
देश मेरा ये बने विश्व गुरू, तुझ सा ही आज़ाद रहे-
ऊंचा उड़े तिरंगा नभ में ऊंचा, जन गण मन आबाद रहे
बीती यादों के पिंजर का, ताज रखा मेरे सिर पर-
अजब साहसी बन जाती हूं, लौह-तीलियों से घिरकर
अबकी बार कुंवर जब मेरा, सीमा पर धावा बोलेगा-
विजयी शूर बनकर लौटेगा, इस पिंजर मेरा खोलेगा
