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डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'

Tragedy Inspirational

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डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'

Tragedy Inspirational

यादों के पिंजरे में

यादों के पिंजरे में

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मेरे माँ बाबा को जाकर, रे कपोत! देना संदेसा-

सोने के पिंजरे में रहकर, सुखी है बेटी मंजूषा


तन का रोम-रोम पुलकित है, हूक उठे है मन ही मन-

ब्याही थी जिस वीर कुंवर से, निश दिन करे उसे सुमिरन


सीमा से आ गया बुलावा, झटपट ही वे हुए रवाना-

कभी नहीं मंज़ूर उन्हें था, दुश्मन से बस मुंह की खाना


रण-कौशल के सभी पैंतरे, दिखा दिये, शत्रु को मारा-

वीरगति पाई योद्धा ने, अविरल बही रक्त की धारा


बिछुड़ गए स्वामी वो मेरे, मुड़कर भी न देख सके,

नन्हा वीर गोद में आया,आँखें भी न सेंक सके


यौवन के पिंजरे में बैठी, उड़ने की न चाह मुझे-

नन्हे सैनिक को पालूंगी, प्यासे मन की प्यास बुझे


राह चुनी है मैंने खुद ही, सीमाबद्ध उसूलों की-

कैद रहे ज्यों गुल की खुशबू, चुभन सहे है शूलों की


देश मेरा ये बने विश्व गुरू, तुझ सा ही आज़ाद रहे-

ऊंचा उड़े तिरंगा नभ में ऊंचा, जन गण मन आबाद रहे


बीती यादों के पिंजर का, ताज रखा मेरे सिर पर-

अजब साहसी बन जाती हूं, लौह-तीलियों से घिरकर


अबकी बार कुंवर जब मेरा, सीमा पर धावा बोलेगा-

विजयी शूर बनकर लौटेगा, इस पिंजर मेरा खोलेगा



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