तजुर्बा
तजुर्बा
तजुर्बा जिंदगी का खत्म होगा मौत पर
इस तरह जिएंगे के मरना भूल जाएंगे
याद रहेंगे सारे सबक जो हार से मिले
लड़ेंगे इस तरह के हारना भूल जाएंगे
क्या कसूर उसका जो हम से मिला ही नही हसरत
वो मेरे बज्म मे आएंगे सारी उलझने भूल जाएंगे
फिर मसला यह है के,
इतना तो मांगा नही जितना हासिल हुआ
जो संभला नहीं नलायकी में तो गिर जाएंगे
फिर किसी तरह से गुजर जाएगा यह वक्त भी
फिर हम भी वक्त के सहारे आगे बढ़ जाएंगे
इक हाथ में होंगे मलाल, दूजे में नसीहत
होगा यूं के अगले पल फिर फिसल जाएंगे
फिर भी वो इक ख्वाब , वही हयात की गमगिनियां !
के फिर टूटेगा वो इक ख्वाब जो जिंदगी था
फिर उस ख्वाब की मजार पर ताउम्र जाएंगे
दीवानगी की जद तक जहन में रहीं थी उम्मीदें कभी
ऐ जमाने यह बतला जरा अपनी रूह में झांक कर,
फिर यह दीवाने किधर जाएंगे ।।
और अगर उम्र गुजरेगी सारी सीखने में
तो फिर अफसोस भला कब मनाएंगे
नही हुआ हासिल ? ना सही हसरत
रास्तों पर बैठ मंजिल का शौक मनाएंगे ।
किसी रंज, किसी तोहमत ,किसी अफसुर्दगी की मयार
के वो जो था शख्स जो भरता था दम हौसलों से
रुक गई हैं सांसे शायद, शायद कलम है बेजार
ठोकरों को चुने नही पत्थर, बस अल्फाज़ ही अल्फाज़
दुनियां कहती है हसरत, यह शख्स है बड़ा बेकार ।।
