यादें
यादें
सुनो माधव
तुम्हारा कुछ मेरे पास रह गया है
ले तो गए हो बांसुरी
मधुर तान उसकी रह गयी है।
मेरी सांसों के भीतर
सुनो कृष्ण
तुम्हारी वो श्यामल सी चितवन
चली गयी है साथ तुम्हारे
पर उन नयनों की चंचलतायें
मेरे मन को बींध रहीं हैं।
सुनो कान्हा
माखन मिश्री की वो गगरी
भरी हुई है पास तुम्हारे
पर मटकी पर फेंका वो कंकर
मुझमें अब भी चुभा हुआ है।
सुनो लीलाधर
गोपी संग वो रास तुम्हारे
साथ तुम्हारे बीत चुके हैं
घुंघरू की वो मीठी खनखन
अब भी मेरी पैजनियां में
झनक रहीं हैं।
सुनो सांवरे
तुमको घेरे रहती थी जो
पीतवर्ण की वो दुशाला
अब भी तुमको ढांक रही है
पर उसकी वो पीत सी आभा
मेरे मुख पर दीख रही है।
सुनो कन्हैया
बीते पल की वो स्मृतियां
छोड़ गए तुम मेरे आंगन
उन महकों से हंसता मैंने
जीवन तुमको सौंप दिया था
धड़कन में सांसों की रुनझुन
नाम तुम्हारे भरी हुई है।
नश्वर तन में प्रेम पगे से
व्याकुल मन को छोड़ गए हो
आ जाओ एक बार वहीं तुम
यमुना के उस नीरव रज में
दबी हुई गूंज तुम्हारी।
छूटी हुई वो सभी धरोहर
सौंप तुम्हें उऋण हो जाऊं
फिर धरती का कण हो जाऊं।