याद में
याद में
याद तेरी रातों के ख़्वाब बनाकर,
आती है मुझे ख़ुशबू, गुलाब बनकर।
सुबह की लाली, तेरा नाम लेती है,
लो मैं आ गयी हूं, जैसे कहती है।
शाम का साया, जब भी गहराया,
मेरे मन को, याद ने बेहद तड़पाया।
हुई रात, चांदनी ने आग लगाई,
कितनी बेदर्द, दिल पर दाग़ लगाई।
ख़्वाबों ने, रातों को जगाकर पूछा ,
क्या ! नाराज़ हैं मुझसे, रोकर पूछा।
इस तरह, तन्हाई मिली भीड़ में,
न जाने कैसे,सिसकती रही भीड़ में।
हां, याद आया, उसी का दिया है ये पैगाम,
याद में जिसकी, छलके अश्कों के जाम।