याद करता हूँ
याद करता हूँ
मैं खामोश सा उसके आने का इंतजार करता हूँ,
शायद उसको मालूम है, मैं उसको प्यार करता हूँ,
वो रोज़ जानबूझकर देर से आती है सामने,
मैं भी सैलाब को रोककर, उसका एहतराम करता हूँ।
कुछ ही पल मिलता है, फ़क़त उसको देखने के लिए,
बस वो पल ही काफी है कल तक जीने के लिए,
ज़माना उसको मुझमे, और मुझमे उसको ढूंढता है,
और मैं खुद में उसको खोने का काम करता हूँ।
छुट्टियों के दौर अब पसंद नही आते,
क्योंकि उसको देखने के पल नहीं आते,
चंद दिन ऐसे लगतें हैं, जैसे कई अरसे हो गए,
इसलिए देखने उसको, उसके गांव जाया करता हूँ।
उसकी आदत ऐसी, जैसे खाने, पीने, सोने, की,
यादों में है गुलाबी मुस्कान, अदा शराबी आंखों की,
बिना देखे, बिना बोले हाल-ऐ-दिल बयां हो जाता था,
बहुत कुछ खोने के बाद, आजकल याद करता हूँ।