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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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याचना

याचना

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पग पग चलूँ अच्छी राहों पर, ऐसा भाव जगाओ,

मन के सारे राग- द्वेष को मालिक तुम भगाओ।


मैं मूढ़ -मति अंधकार में कब से भटक रहा हूं,

प्रेयस की चकाचौंध में, जीवन काट रहा हूं,

मुझे संभालो और बचा लो अब मत देर लगाओ,

मन के सारे राग- द्वेष को मालिक तुम भगाओ।


जीवन का भटका राही हूँ निजहित सोच ना पाता,

भव- जाल के माया में पड़ कर खुद को रोक न पाता,

अंतर्मन की पीड़ा को तुम से कैसे सुनाऊं,

मन के सारे राग -द्वेष को मालिक तुम भगाओ।


घेर लिया आशक्ति जीवन की अपना जाल फैलाए,

फँसा लिया मुझको इतना कि कुछ समझ ना आए,

हे!प्राणदाता मुझ दुखिया के प्राण अब बचाओ,

मन के सारे राग-द्वेष को मालिक तुम भगाओ।


तामसिक वृत्तियाँ अब उगल रही है विष हमारे आगे,

लालची मन विषपान कर रहा कैसे इनको त्यागे,

हे !दानदाता "नीरज" की दुर्दशा पर अब तो करुणा

बरसाओ,

मन के सारे राग- द्वेष को मालिक तुम भगाओ।



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