week-36 अजेय (कर्ण)
week-36 अजेय (कर्ण)
सत्य का वो साथी दिल से दानवीर था
वो सूर्य पुत्र दानवीर अतुलित महान था
योद्धा था वो निपुण नीतियों में वीर था
सूरज सा तेज मुख पर अग्नि सा उसका क्रोध था
धनुर्विद्या में था वो निपुण बलशाली, बाहुबली पराक्रम कौशल उसमें गुण था
परशुराम का था शिष्य वो अजेय कर्ण था
कहते थे सब उसे सूत पुत्र लेकिन वो क्षत्रिय था
लक्ष्य भेदने में उसको लगता बस एक क्षण था
कुंती माँ का ज्येष्ठ पुत्र, धैर्य शील स्वभाव से वो नम्र था
तन पर था उसके कवच चमक स्वर्ण जैसा था
कान में कुंडल का तेज मानो सूर्य जैसा था
दुर्योधन का परम मित्र पाण्डव का भाई था
राधा माँ का प्रिय अधिरथ का शौर्य था
महाभारत के युद्ध में वो कौरव के साथ था
युद्ध भूमि में धंसा कर्ण के रथ का पहिया या भाग्य का कोई खेल था
शायद उसे धरती माँ का शाप था
ना धनुष उसके हाथ में था
देव इंद्र ने भिक्षुक बन उसके कवच, कुंडल दान में मांग लिया था,इसलिये वो दानवीर कर्ण था
युद्ध नियम के विरुद्ध हुआ अभिमन्यू का अंत था इस बात को याद दिला केशव ने कहा हे पार्थ बाण चला
अर्जुन बाण साधा ये नियति का आघात था
जा के लगा बाण फिर रुका ना एक पल था
निहत्था मारा गया वो सूर्य पुत्र कर्ण था
राधे कर्ण की मृत्यु से दुर्योधन शोकाकुल था
लेकिन उसे अपने परम मित्र पर गर्व था
इतिहास में लिखा गया नाम उसका सुनहरे अक्षरों में वो अजेय दानवीर कर्ण था
