व्यथित भारत
व्यथित भारत
क्या हो गया
इस देश को
लड़ रहें हैं लोग ?
हमने इन
समाज के संचालकों से
पंडितों से, विद्वानों से,
राजनीति के महारथिओं
से पूछा तो
अपनी उग्र भंगिमाओं से
चिल्लाकर बोल उठे-
"हमें हमारा अधिकार चाहिए
मंदिर बनाएंगे
मस्जिद गिराएंगे
राम जन्म -भूमि
फिर से सँवारेंगे !
लोग हताहत
होते हैं तो क्या ?
धर्मों के नाम पे
मरते हैं तो क्या ?
धर्म के ही नाम
पर हम मर मिटेंगे
टूट जाये फूट जाये
हम नहीं पीछे हटेंगे
हमें क्या करना
भारत की अखंडता से ?
विदेशियों के फिर
हो आक्रमण
भले ही,क्यों ना हम फिर
से परतंत्र हो ?
हमें तो बस
एक ही चाह है,
जियें तो संघर्ष करते
मरें तो संघर्ष करते !
नाम मेरा हो अगर
इस देश में
तो कहें सब लोग
संघर्ष मैंने सिर्फ किया
कल्याण मानव के लिए ! "
और यह सुनकर
रह गया स्तब्ध मैं !
यही व्यथित भारत
का लिखा है योग !
क्या हो गया
इस देश को
लड़ रहें हैं लोग !
