व्यर्थ का परिश्रम
व्यर्थ का परिश्रम
वो नशा भी क्या नशा है जो नशा सर चढ़ कर ना बोले
उस पूजा स्थल जाकर करना क्या है जो मेरे मन की आँखें ना खोले
क्या कोई ऐसी राह पता है जिसकी कोई मंजिल ही ना हो
क्या ऐसा कोई सागर देखा है जिसक कोई भी साहिल ना हो
क्या कोई शृंगार है ऐसा जिसका दर्शन नीरस सा हो
क्या कोई दान है ऐसा जिसमे छिपा ना कोई यश हो
एक ऐसा तुम ज्ञान बताओ जिसका हासिल बस कड़वा हो
एक ऐसा इंसान बताओ जो सदा सच से विमुख खड़ा हों
एक ऐसा कोई जीव बता दो जो ना कोई जीवन गढ़ता
एक ऐसा संगीत बताओ जिसके हर छंद मे मधु हों बहता
मेरा कोई उद्देश्य नही है, करने को कुछ शेष नही है
अधूरी है हर एक कहानी, पूरा करने का लेकिन ध्येय नही है
बचा ना कुछ है इस जीवन मे, ना पाना है ना खोना है
जो जैसा है छोड दिया है, मुझको उन सब करना क्या है
तो क्या करना इस जीवन का जिसमे ना कोई सार्थकता हो
पूरा जीवन बस जैसे के व्यर्थ सा एक परिश्रम भर हो