वतन पर जाँ निसार है
वतन पर जाँ निसार है
जब वतन पर जाँ निसार है,
ना देश की कभी हो हार है,
वीर को मातृभूमि से प्यार है,
गोली खाने को वीर तैयार हैं।
कुर्बानी कभी व्यर्थ न जाती,
शीश दान करके स्वर्ग पाये,
पुकार रही है भारत माता यूं,
ऋण उतार कर खूब हँसाये।
जब वतन पर जाँ निसार है,
केवल स्वतंत्रता से प्यार है,
विदा कर रहीं मां बेटों को,
उनको मातृभूमि से प्यार है।
भगत सिंह खाई थी फांसी,
संग राजगुरु, सुखदेव चढ़े,
अनाम वीर शहीद हुये कई,
बस दुश्मन से जाकर लड़े।
लाला जी ने खाई थी लाठी,
चंद्रशेखर जीवनभर आजाद,
एक एक कर जान न्योछावर,
अभी तक भी जन को याद।
लहु से सींच नसीबपुर माटी,
पुकार रहा हिंदुस्तान का वीर,
आजादी दिलवाई थी लड़कर,
परतंत्रता की पल में हरी पीर।
इतिहास भरा है वीरों से अब,
कुर्बानियां सिर चढ़ बोलती हैं,
कैसे पाई जान गवां आजादी,
कितने ही राज वो खोलती है।
बच्चा बच्चा अब खड़ा तैयार,
फिर नहीं हो सकती हार है,
कभी नहीं पीछे हटने वाले हैं,
ऐसे में वतन पर जाँ निसार है।
नेहरु,गांधी और सुभाष सदा,
भरी थी अंग्रेजों बीच हुंकार,
तीखे तेवर यूं दुश्मन ने देखे,
अंग्रेज भी पल में गये हार।
मातृभूमि आज पुकार रही,
परतंत्रता कभी न आने पाये,
आवश्यकता अगर पड़ जाये,
तब बढ़कर मां लाज बचाये।
वतन पर जाँ निसार है करेंगे,
वीर शहीद कहते ही जा रहे,
गोली सीने पर बेशक खानी,
पर आंखों से आंसू नही बहे।।