सांवरे की सूरत आज भी
सांवरे की सूरत आज भी
सांवरे की सूरत आज भी,
भक्तों को बड़ी सुहाती है,
गोपाल के खेल देख लो,
गोपिका बहुत लुभाती है।
सांवरे की सूरत आज भी,
हर जन मन बस जाती है,
कान्हा की मुरली देख लो,
ग्वालों को बहुत सुहाती है।
सांवरे की सूरत आज भी,
सुंदर सा पैगाम दे जाती है,
लाख प्रयास बेशक कर ले,
ये मौत अटल बन जाती है।
सांवरे की सूरत आज भी,
गोकुल में तुम्हें बुलाती है,
सूनी हो चुकी जो गलियां,
वो कहानी स्पष्ट सुनाती हैं।
कहीं धाम राधा कृष्ण के,
कहीं द्वापर नगरी प्यारी है,
कहीं बृज की होली खेलों,
कहीं मटकी तोड़ तैयारी है।
सांवरे की सूरत आज भी,
गोवर्धन पर्वत में मिलती,
अंगुली पर उठा लिया था,
मानव की खुशियां खिलती।
गोपियों संग में रास रसाते,
ऋषि मुनियों को वो बचाते,
सत्य का वो साथ देते सदा,
सोये हुये को वो ही जगाते।
विष्णु के अवतार निराले हैं,
द्वापर युग के रहने वाले हैं,
कोई एक माता से पलते हैं,
एक जन्म दिया एक पाले है।
सांवरे की सूरत आज भी,
मन को प्रसन्न कर जाती है,
भगवद्गीता का सार दिया,
क्षण भंगुरता को दर्शाती है।
सांवरे की सूरत आज भी,
घर घर में जगह बनाती है,
कभी दुष्ट संहार करती रहे,
कभी मन मंंदिर हँसाती हैं।
सांवरे की सूरत आज भी,
पापों को समूल मिटाती है,
अपने भक्तों के मन की वो,
पल में ही प्यास बूझाती हैॅ।