हालात इतने भी बुरे नहीं
हालात इतने भी बुरे नहीं
चहुं ओर हरियाली छाई,
पपीहे ने आवाज लगाई,
लो ठंडी ठंडी बयार बही,
हालात इतने भी बुरे नहीं।
महामारी ने हाल बिगाड़ा,
कभी गर्मी तो कभी जाड़ा,
हर विपदा जन जन सही,
हालात इतने भी बुरे नहीं।
धर्म कर्म पर चलते कितने,
परहित में सभी लगे अपने,
आओ मिलकर चले सभी,
मंजिल मिलेगी जरूर कहीं।
जमकर हो गई अब बारिश,
दूर हो गये खुजली खारिश,
अंबर पर पंछी उड़ान भरते,
खेतों में जंगली जीव चरते।
बुरे हालात का दौर चला,
आज टल गई है वो बला,
खेत खलिहान अब पुकारे,
सावन माह चले प्रभु द्वारे।
आक्सीजन की मारा मारी,
महामारी समक्ष सृष्टि हारी,
अब हालात सामान्य लगते,
अब तो फिर पांडाल सजते।
सुख दुख हरदम आते जाते,
नसीब में मिले वो ही पाते,
नाल गगन में लो पंछी गाते,
गुजरे मानव याद बन जाते।
हालात इतने भी बुरे नहीं,
सामान्य लगते हर कहीं,
आएगा तो उसे निपटेंगे,
सुख के क्षण यूं झटकेंगे।
देश आज खुशहाल बना,
मिट गया संकट जो घना,
लो दिन खुशियों के आये,
मांग रहे खुशहाल दुआयें।
बारिश भी अच्छी हो गई,
प्रेमिका प्रेमी संग खो गई,
लहलहा रही फसल आज,
होगा जमकर अब अनाज।
तीसरी लहर नहीं आएगी,
वो तो डरकर भाग जाएगी ,
आनंद की लो बयार बही,
हालात इतने भी बुरे नहीं।।