राम तुम्हारे युग का रावण
राम तुम्हारे युग का रावण
राम तुम्हारे युग का रावण,
आज भी जग में मिलता है,
कितनी सीता पुकार रही हैं,
फूल पाप का यूं खिलता है।
त्रेता युग में मार वो गिराया,
नहीं उसका सूरज ढलता है,
राम तुम्हारे युग का रावण,
निडर होकर बड़ा चलता है।
द्वापर युग में था वो जिंदा,
श्रीकृष्ण रूप में जब आये,
सुदर्शन चक्कर जब चलता,
कितने रावण मार गिराये।
राम तुम्हारे युग का रावण,
कलियुग में हँसता रहता,
कलिका अवतार अब लो,
हर जन मन से यह कहता।
रूप बदल लिया है रावण,
पाप ,दुष्कर्म, नीचता आये,
राक्षस राज बनकर कभी वो,
कितने देखो वो ढोंग रचाये।
राम तुम्हारे युग का रावण,
कभी नहीं जग मर पाएगा,
जितनी बार मार गिराओगे,
वो फिर से धरा पे आएगा।
अग्रि बाण, सुदर्शन चक्र ,
रावण को नहीं मार पा रहे,
घर कलियुग का वक्त यह,
जन जन आंखें अश्रु ही बहे।
राम तुम्हारे युग का रावण,
गली गली में धाक जमाये,
नहीं बख्शते वो सीता को,
चाहे कितना शोर मचाये।
होते जाये पैदा अब रावण,
राम नहीं जन्म ले पाया है,
पापों से धरती लबालब है,
घोर पाप युग अब आया है।
राम तुम्हारे युग का रावण,
हजारों शीश से पैदा होता,
कितने शीश काटकर डाले,
हर जन सोच सोच के सोता।
भ्रूण हत्या, दहेज बलि, ढोंग,
साधु रूप बन गये हैं स्वादु,
पाप से धरती भरी खड़ी है,
नाश करने का ढूंढती जादू।
राम तुम्हारे युग का रावण,
प्रलय जगत में मचाता है,
रोद्र रूप अब लेकर आओ,
रावण से कौन बचाता है।।