सब्र से ही इश्क महरूम है
सब्र से ही इश्क महरूम है


सब्र करना जरूरी होता है,
सब्र करना कभी मजबूरी है,
सब्र कभी मजा देता धूम है,
सब्र से ही इश्क महरूम है।
इश्क की हालात पतली है,
हुस्न की जीत ही असली है,
पर सब्र से लेना होता काम,
इश्क लगती सुंदर ढफली है।
घर द्वार भी सज जाते कभी,
जब हुस्न चलके घर आता है,
बहारे भी फूल बरसाती देखी,
कभी इश्क दिल तड़पाता है।
इंतजार करना भी मजबूरी है,
बांहों में सजना भी जरूरी है,
जब हवायें विपरीत चलती है,
दिलों की बढ़ती बस दूरी है।
कभी इश्क भी ताने सहता है,
कभी हुस्न दिल में रहता है,
सब्र भी कभी कब्र बन जाता,
अश्रु की धार झर झर बहते हैं।
जब चाहत बलि चढ़ जाएगी,
तब तो हुस्न बनता मासूम
है,
सब्र करना पड़ता तब कभी,
सब्र से ही इश्क महरूम है।
सब्र करके मजनूं रोया है,
लैला का दुपट्टा भिगोया है,
सब्र से ही इश्क महरूम है,
दिल जान सब ही खोया है।
बंजर भूमि सी लगती कभी,
सब्र करते करते किसी यार,
कभी पास आकर बिछुड़ता,
नसीब नहीं हो पाता प्यार।
सब्र करते रहना पहचान है,
सब्र का फल ही महान है,
सब्र तो करते रहना पड़ता है,
सब्र जीवन का ही विधान है।
सब्र से ही इश्क महरूम है,
सब्र से ही हुस्न महफूज है,
सब्र करने की शक्ति हो तो,
सब्र ही चांदनी सी दूज है।
सब्र से ही इश्क महरूम है
सब्र करना जमाने ने माना,
सब्र नहीं कर पाता है जो,
उसे पड़ता दर्द राग गाना।।