वतन के लिए
वतन के लिए
कभी जुदाई लगती थी ज़हर
अब फ़ासले ज़रूरी हैं
जीने के लिए।
दर्द तो होता है दिल में मगर
हैं अब दूरियां लाज़मी
अपनों के लिए।
छूट न पाएगी कभी वो डगर
बढ़े हैं जिस पर क़दम
वतन के लिए।
कभी जुदाई लगती थी ज़हर
अब फ़ासले ज़रूरी हैं
जीने के लिए।
दर्द तो होता है दिल में मगर
हैं अब दूरियां लाज़मी
अपनों के लिए।
छूट न पाएगी कभी वो डगर
बढ़े हैं जिस पर क़दम
वतन के लिए।