बनारस की गली में
बनारस की गली में


बनारस की गली में
दिखी एक लड़की
देखते ही सीने में
आग एक भड़की
कमर की लचक से
मुड़ती थी गंगा
दिखती थी भोली सी
पहन के लहंगा
मिलेगी वो फिर से
दाईं आँख फड़की
बनारस की गली में...
पुजारी मैं मंदिर का
कन्या वो कुआंरी
निंदिया भी आए ना
कैसी ये बीमारी
कहूं क्या जब से
दिल बनके धड़की
बनारस की गली में...
मालूम ना शहर है
घर ना ठिकाना
लगा के ये दिल मैं
बना हूं दीवाना
दीदार को अब से
खुली रहती खिड़की
बनारस की गली में...