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वसीयत दे गया

वसीयत दे गया

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गया तो गया मुझे यादें, अपनी वसीयत दे गया

दिल जिगर चैन वैन साथ, मेरी खैरियत ले गया


हँसती खेलती जिंदगी मेरी, अब सुनसान हो गई

यों हँसता हुआ वो मुझे, अपनी सलियत दे गया


ग़म होता है इतना, इश्क में पहले मालूम न था

मालिक ए ग़म का मुझे, सब मिल्कियत दे गया


टूटकर भला प्यार करता, आज कोई जमाने में

मुझ नासमझ को बेवफाई, की नसीहत दे गया


टूटना फूटना दिलो का, आम बात है आजकल

बचना हुश्नवालों सितमगर, से वो फजीहत दे गया


बस वही है मेरे इश्क ए सफर की मंज़िल मेरी

मेरे सारे दावों की मगर, सारी कैफियत दे गया            



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