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Saroj Garg

Abstract

4.3  

Saroj Garg

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वर्षा ऋतु

वर्षा ऋतु

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पत्ता पत्ता लहक रहा है पीले पीले फूलों का रंग,

चारों ओर फैल रहा है,

हरियाली है छाई चहुँ दिस हवा मधुर संगीत सुनाती,

बिजली बादल मैं लहराती,

मानो कोई अप्सरा आई धवला सी गाती बलखाती,

धरा ने अपना आँचल फैलाया

बूँदो का पत्तो पर गिरना और सरक कर धीमें धीमे नीचे गिरना,

आँख मूँदकर गीत सुनो ,

चिड़ियौ की चहचाहट, सबकुछ मनमोहक सा , मंत्रमुग्ध सा रचनाकार,

ऊपर बैठा सबको नचाता ,

अनोखे रंग बिखेरता , है कोई सुन्दर रचनाकार, हमको है नाच नचाता ,

ये अद्भुत नज़ारा,

जो कोई आनन्द लेगा इसका , जाने कब पतझड़ आये ,

अद्भुत रूप चुरा ले जाये!


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