"वर्षा की राजनीति"
"वर्षा की राजनीति"
सूरज के सिग्नल नहीं,
अब करते हैं काम।
आसमान में लग रहा,
बादल ट्रैफिक जाम।
गरज रहे, बरसे नहीं
हो रही खीचम-तान।
आसमान को बना दिया,
राजनीति मैदान।
चमक-दमक कर गिर गई,
बिजली बारंबार।
जैसे, अचानक गिर गई
अल्पमत सरकार।
उमड़-घुमड़ कर चल रहे,
छींटाकशी के दौर।
आपस में टकरा रहे,
बना चुनावी दौर।
हवा पर भी लग रहे,
मिले-जुले आरोप।
धार्मिक भावना फैलाकरें
जन-गण में प्रकोप।
कटघरे में वर्षा खड़ी,
आरोपों की मार।
कहीं पर सूखा पड़ रहा,
कहीं मूसलाधार।
इंद्र को संदेशा मिला,
वर्षा ऋतु के नाम।
बहुत शिकायत मिल रही,
तुरंत आइए धाम।