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अच्युतं केशवं

Abstract

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अच्युतं केशवं

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वृक्ष तेरी रागमयता ,

वृक्ष तेरी रागमयता ,

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वृक्ष तेरी रागमयता ,

आज मुझ पर झर रही है .

तन समूचा भीजता है,

मन सुवासित कर रही है .

हरीतिमा श्यामल तुम्हारी,

इन्द्रधनुषों को लजाती.

धर प्रलय के शीश पर पग,

बीन जीवन की बजाती.

गंधमय वानस्पतिकता ,

चर-अचर में तिर रही है .

वृक्ष तेरी रागमयता ,

आज मुझ पर झर रही है .(१)

सात्विकी मकरंद छाया,

ओढ़नी सी ओढ़ लूं मैं ,

तव सुमन की सौम्यता से,

मृदुल नाता जोड़ लूं मैं .

नीड़कामी लघु-विहंगिनी ,

शाख पर तृण धर रही है .

वृक्ष तेरी रागमयता ,

आज मुझ पर झर रही है .(२)

.



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