वृद्धावस्था
वृद्धावस्था


पत्थर सी हो गयी
मेरी दुनिया
पड़ी एक कोने में
आते जाते कोई भी
पैरों से यूँ ठोक दे
बारिश सहती
आंधी सहती
हर तूफान का
सामना करती
तपिश में पिघलती
सर्द में ठिठुरती
बंजर भूमि सी
हर दर्द सहती
कैसे भूल गए तुम
आँचल की छाँव को
मेरी ऊँगली पकड़
गिरते उठते दौड़ को
मेरे हाथों का निवाला
अपने ओर मोड़ने को
पाप की छड़ी से
मेरी ओट को
कैसे भूल गए तुम
मेरी मुस्कान से
तुम्हारी
खिलखिलाहट को
हर पल का व्याख्यान
हर पल उत्साह को
अब हो गई बोझिल मैं
बाधा बन गयी तुम्हारे
जीवन की मैं
कैसे भूल गए तुम
हर रात जागी हूं
सिर्फ तुम्हारे लिए
अब हर रात की
परेशानी हूँ मैं
यहां छोड़ दिया
कह कर यह घर है
दुनिया है वृद्धों की
पर मेरा जीवन तो
सिर्फ तुझ से है
हर खुशी हर पल
सिर्फ तुझ से है।