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Anita Sharma

Tragedy

3  

Anita Sharma

Tragedy

वृद्धाश्रम

वृद्धाश्रम

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ओ माँ ,कितनो को तुझ पर कविताएं पढ़ते देखा है

तेरी तारीफों में कितने कसीदे गढ़ते देखा है,

कितनो को शब्दोँ से सिर्फ तुझपर प्यार लुटाते देखा है,

कितना इस दुनिया को तेरी ममता का पाठ सुनाते देखा है,

देखा है पर कुछ ऐसा भी जिसके लिए मिलते शब्द नहीं,

मायूसी सी छा जाती है दिल में जग जाते दर्द कहीं,

तू जिसके लिए सब कुछ थी कल तो

क्यों फिर अब तेरा कोई वजूद नहीं,

कितनी कद्र है तेरी तेरा ही भविष्य तुझे बताता है,

कैसे एक एक करके सारे हिसाब गिनाता है,

मुड़ कर क्यों नहीं देख पाता वो तेरे चेहरे पर छुपी वो मायूसी,

तेरी मुस्कराहट में पीछे भी कितनी है बेबसी।


क्यों याद नहीं कुछ उसको कैसे तू रात भर न सोती थी,

कैसी भी उलझन हो तुझको तू कभी नहीं रोती थी,

क्या दर्द सहकर तूने उसके अस्तित्व को सँवारा है,

क्यों आँखों में तू चुभती है जब वो तेरी आँखों का तारा है ,

जिस घर को तूने तिनकों से जोड़ा और सुन्दर महल बनाया था,

क्यों आज उसी घर में तेरा होना खटकते देखा है।


जिन हाथों से तूने दिन भर उसकी भूख को मिटाया था

उन काँपते हाथों को भी मैंने उसको झटकते देखा है,

कितना दर्द तेरी इन बिलखती आँखों में उठते देखा है,

ढलती हुई उम्र की इन कोमल सलवटों को उभरते देखा है,

ओ माँ तेरे हालातों से मैंने पर्दा उठते देखा है ,

तेरी मज़बूर निग़ाहों में तेरी आस को मरते देखा है

ओ माँ ,कितनो को तुझ पर कविताएं पढ़ते देखा है !


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