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Ram Chandar Azad

Tragedy

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Ram Chandar Azad

Tragedy

वक़्त-बेवक़्त

वक़्त-बेवक़्त

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बदल गया कुछ बदल रहा है अपना हिंदुस्तान रे।

मंद पड़ गई गाँव की रौनक शहर हुआ वीरान रे।।


जगह जगह पर पहरे हैं घर में रहने को मजबूर।

चुपके चुपके घर जाने को बेबस हो गए मज़दूर।।

फिर से याद आ रहे उनको खेत और खलिहान रे।।


काम धाम सब बंद हैं ऐसे , सांप सूंघ गया है जैसे।

सूखी रोटी भी नसीब से भाग रही जिएँ अब कैसे?

जिजीविषा के वशीभूत सब तज घर किया पयान रे।।


बीमारी लेकर आई संग बेकारी, भुखमरी का जाल।

रोजी रोटी छिनी जा रही लाचारी और खस्ताहाल।।

अस्त व्यस्त की पराकाष्ठा अब हरने लगी है प्राण रे ।।


भारत भ्रमण फीका पड़ गया उनके कदमों के आगे।

लक्ष्य बनाकर निकल पड़े अब मौत देख उनको भागे।।

जीवन मरण से परे व्रत मन मे लिया है उसने ठान रे।।


जिनके फौलादी बाहों ने महल बनाये बढ़ चढ़कर।

आज निराश्रित वह पैदल निकल पड़ा है अपने घर।।

ताजमहल और लालकिला भी चकित और हैरान रे।।


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