STORYMIRROR

Mamta Singh Devaa

Romance

4  

Mamta Singh Devaa

Romance

' वफा - ए - मुहब्बत '

' वफा - ए - मुहब्बत '

1 min
319

इतने नासमझ तो नही तुम

जो ऐसे अनजान बने बैठे हो

या जानबूझ कर मेरी मुहब्बत से

झूठ मूठ में नाराज़ हुये ऐठे हो ?


तुमको मेरी चाहत का अंदाज़ा नही

अपनी हिचकियों को क्या समझते हो

ये बार - बार पानी का गिलास उठा कर

मेरी चाहत को नज़र - अंदाज़ करते हो ?


तुमको मेरी वफा समझ नही आती 

या समझना ही नही चाहते हो तुम

क्यों मेरी वफा - ए - मुहब्बत से

इस कदर बेचैन हुये बैठे हो तुम ?


ऐसा क्या है जो समझ नहीं आता

इतने सरल - संयोग को तुम

अपनी बेवजह की सोच से

बेहद क्लिष्ट - वियोग किए बैठे हो तुम ,


चलो माना की बदले में तुम मुझको

वफा - ए - मुहब्बत दे नही सकते हो

लेकिन मेरी मुहब्बत का तहे दिल से 

इस्तक़बाल तो कर सकते हो तुम।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance