' वफा - ए - मुहब्बत '
' वफा - ए - मुहब्बत '
इतने नासमझ तो नही तुम
जो ऐसे अनजान बने बैठे हो
या जानबूझ कर मेरी मुहब्बत से
झूठ मूठ में नाराज़ हुये ऐठे हो ?
तुमको मेरी चाहत का अंदाज़ा नही
अपनी हिचकियों को क्या समझते हो
ये बार - बार पानी का गिलास उठा कर
मेरी चाहत को नज़र - अंदाज़ करते हो ?
तुमको मेरी वफा समझ नही आती
या समझना ही नही चाहते हो तुम
क्यों मेरी वफा - ए - मुहब्बत से
इस कदर बेचैन हुये बैठे हो तुम ?
ऐसा क्या है जो समझ नहीं आता
इतने सरल - संयोग को तुम
अपनी बेवजह की सोच से
बेहद क्लिष्ट - वियोग किए बैठे हो तुम ,
चलो माना की बदले में तुम मुझको
वफा - ए - मुहब्बत दे नही सकते हो
लेकिन मेरी मुहब्बत का तहे दिल से
इस्तक़बाल तो कर सकते हो तुम।

